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हिन्दी के महावीर प्रबन्ध काव्यों का आलोचनात्मक अध्ययन
दुर्दान्त बना फिरता था, अपनी ताकात के मद में। अकड़ा अकड़ा था चलता
अभिमान भरा वह हठमें। १ “ताकत" विदेशी शब्द है। महावीर के शब्दों में कविने सहनशीलता के बारे में उद्बोधन देते हुए लिखा है कि -
जो फूलों की डाली नोचे, उसको फूल न बदबू देते। वो उनकी मुट्ठी में मसले,
वे उसको भी खुशबु देते। इस पद में “बदबू' और खूशबू विदेशी शब्द का विषयानुसार सहज रुप से चित्रण हुआ है।
युद्धो की ज्वाला धधक रही, मन मन में लपटें बहक रहीं। तोपों टेंकों को पता नहीं, सरतिाएँ कितनी दहक रही ॥३
*** धरती पर मनमानी की है कैसे कैसे शेतानों ने। ऋषियों मुनियों को कष्ट दिये, कैसे कैसे हेवानों ने ॥४
*** कवि ने तोपों, टेंको, शैतानों और हैवानों विदेशी आदि शब्दों द्वारा भावों के अनुकूल देश की स्थिति का सुंदर चित्रांकन किया है।
नभ-पथ से होकर चली लिये जब बालक ज्यों दिव्य ज्योति हो नीलाम्बर में लक-दक ५
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"श्रमण भगवान महावीर" : कवि योधेयजी, सोपान-१, पृ.४३ वही, सोपान-४, पृ.१३३ “वीरायण" : कवि मित्रजी, "पुष्प प्रदीप", सर्ग-१, पृ.३६ वही, “पृथ्वी पीड़ा", सर्ग-२, पृ.४४ “तीर्थंकर महावीर" : कवि गुप्तजी, सर्ग-१, पृ.१४
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