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हिन्दी के महावीर प्रबन्ध काव्यों का आलोचनात्मक अध्ययन
भूखा हड्डियाँ चबाता था, हर गली नगर घर में मरघट ओठों के लिए तरसते थे, जल भरे हुए प्यासे पनघट ।
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ऐसा निखरा-उभरा यौवन वर्धमान का, खुशबू-सी फैली नगरी में। तत्पर थी कोई भी तरूणी भर लेने कोवह सुगन्ध मन की गगरी में
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उपर्युक्त पदों में बवण्डर, डगमग, पत्थर, गगरी आदि देशज शब्द हैं। वात्सल्य चित्रण में भी सहज रुप से देशज शब्द का प्रयोग हुआ है -
झूलत छोरा और छोरियाँ आओ परियाँ श्याम गोरियाँ माता गाती मधुर लोरियाँ
*** छोरा, छोरियाँ, माता, गोरियाँ, लोरियाँ आदि देशी शब्दों से कवियों ने वात्सल्य के भावों को उभारा है । सहेजते, बुहारता, लसा हुआ, उड़ेलता, लुका, खटखट, उबड़खाबड़, चबचबाकर निहारी, थपेड़, मुड़वा दिये, लिखवाकर दबोचे, करवा दो, बहारो, रिझाते, अकड़ा-अकड़ा, घुमड़कर, करवट, बयार पिसती, छोर, बयासी, लिवालाया, डकराती, खीझ, झुलस, लोरी आदि देशी शब्दों का प्रयोग कवियों ने काव्यों में विषयानुकुल प्रस्तुत किया है। विदेशी:
बोलचाल की भाषा में हम विदेशी शब्द बोलते हैं वह भी सहजता से काव्य में आ गये हैं। कविने भगवान के जन्म से पूर्व की स्थिति का विदेशी शब्दों द्वारा सुंदर चित्रण किया है
“वीरायण", : कवि मित्रजी, “तालकुमुदिनी', सर्ग-३, पृ.७३ "श्रमण भगवान महावीर'' कवि योधेयजी, सोपान-३, पृ.९३ "भगवान महावीर" कवि शर्माजी “शैशवलीला', सर्ग-४, पृ.४७
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