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हिन्दी के महावीर प्रबन्ध काव्यों का आलोचनात्मक अध्ययन
है पुत्र विरागी और
न माँ रोये कोई - १
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माता त्रिशला शादी का प्रस्ताव रखती हुई राजकुमार वर्धमान के सामने अपनी इच्छाओं को सुंदर ढंग से व्यक्त की है -
त्रिशला मात ने कहा, पुत्र ! कर ब्याह राजसत्ता संभाल । मेरी आशाएँ पूरी कर, आँखों के तारे वीर लाल ।
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कवियों ने इसके अतिरिक्त अन्य तद्भव शब्दों का काव्य में निर्वाह किया है। गेह, असेत, धूवाँ, कुपथ, लौ, भाँति, जीती, धरा, सृष्टा, श्वास, अनजान, प्रतिपल, विहग, राह, सोने, दिशाएँ, नव, धरती, पूरित, वास, दुःसह, यत्न, गाथा, कठोर, सहज, आज, नेह सूरज, पल, आठ, चैत, श्रृंगार, तेरस, परिमाण, मोल, गात आदि । देशज :
कवि काव्य की रचना करते समय स्वाभाविक रुप से देशज शब्दों का प्रयोग किया हैं । उन्होने भगवान के जन्म से पूर्व देशकी परिस्थिति का सुंदर चित्रण काव्य में
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किया है
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१.
२.
३.
४.
पाप पुण्य का एक बवण्डर उसे उड़ाए फिरता था,
एक लुढ़कता पत्थर बनकरलक्ष्य हीन वह रहता था । ३
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मैं खोदी गई खंतियों से, लोहे के यन्त्र ने भेदा । ४
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" तीर्थंकर महावीर", : कवि गुप्तजी, सर्ग - ३, पृ. ९९ "वीरायण" : कवि मित्रजी, "विरक्ति", सर्ग -९, पृ. २२८
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'श्रमण भगवान महावीर” : कवि योधेयजी, सोपान - १, पृ. ३५ "वीरायण" : कवि मित्रजी, “पृथ्वीपीड़ा" सर्ग-२, पृ. ४८
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