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________________ हिन्दी के महावीर प्रबन्ध काव्यों का आलोचनात्मक अध्ययन २१३ चतुर्विंशति, विज्ञ, श्रेयांस, यत्नवान, एकदा, चैत्यालय, यौवन, आरूण, शनैश्वरा, चातुर्य, सोकौमार्य, शारद, मौक्तिक, वैदुर्य, शैत्य, गाम्भीर्य, पाथेय, त्रैलोक्य, वैखरी, नैसर्गिक, धैर्य, सौख्य, वैषम्य, वक्ष नासिका, उत्पल, गरल, अंबुधि, नीलाम्बर, सुर, नभ-पथ पांत, मोद आनत, आदृत, वसन, तरु, जटित, नमन, रवि, तन, उषा, पादप, तिमिर, सुमन, भास्वर, शुचि, मही अंक आदि । तद्भव : तद्भव अर्थात् तत्सम शब्दों का बोलचाल की भाषा में परिवर्तन । कवि ने तद्भव शब्दों द्वारा प्रसंगानुकुल पात्रों के भावों को व्यक्त किया है। धरती की वेदना का सुंदर चित्रण किया है - धरती बोली मत कहो व्यथा, अवतार यहाँ रोते देखे । मेरी मिट्टी में बड़े बड़े, राजा रानी सोते देखे ॥ *** कवि ने काव्य में स्वाभाविक रुपसे तद्भव शब्दों का प्रयोग करके काव्य की सौंदर्यता को बढ़ाया है । त्रिशला के रूप सौंदर्य का वर्णन देखिए - ये सुकोमल चरण ज्यों जलजात चन्द्र किरणों सी धवल नखपांत *** इस पद में कवि ने श्वेत नखों की पंक्तियों को भव शब्द चन्द्र की किरणों के साथ तुलना की है। तद्भव शब्द कंकर, पत्थर शब्द द्वारा कवि ने भगवान को ढूँढने का वर्णन किया २. कंकर पत्थर वृक्ष बेल में ढूँढ रहा था वह भगवान् *** "वीरायण" : कवि मित्रजी, “पृथ्वी पीड़ा", सर्ग - २, पृ. ४७ "तीर्थंकर महावीर " : कवि गुप्तजी, सर्ग - १, पृ. १० "" 'श्रमण भगवान महावीर” : कवि योधेयजी, सोपान - १, पृ. ३४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002766
Book TitleMahavira Prabandh Kavyo ka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyagunashreeji
PublisherVichakshan Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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