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हिन्दी के महावीर प्रबन्ध काव्यों का आलोचनात्मक अध्ययन मनुष्य बन गया बधिक वसुन्धरी पुकारती। आँसूओं से आरती स्वदेश की आरती ॥'
*** इस पद में तत्सम शब्द “बधिक” और “वसुन्धरा'' द्वारा मनुष्य की हीनता दिखाई है।
शचिने लाकर शिशु दिया इन्द्रको सत्वर।
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भवन में नृपके किया प्रवेश उदित हो नभ में ज्यों राकेश । ३
*** खेलते थे मिल सखागण साथ हाथमें लेकर किसीका हाथ-४
*** बालपन से ही उनमें ये तीन ज्ञान सुविचारी, ज्ञानी थे दिव्य दिवाकर मति-अवधि और श्रुतधारी-५
*** उपर्युक्तपदों में कविने तत्सम शब्दराकेश से राजा का, सखा शब्द से शैशवलीला का और ज्ञानी की दिवाकर शब्द से तुलना करके काव्य में भावों को सुंदर ढंग से प्रस्तुत किया है।
इसके अलावा भी स्थान-स्थान पर तत्सम शब्दों का प्रचुर मात्रा में प्रयोग हुआ है। परिधान, पुष्पेसु, जिगीषु, यथैव नरेन्द्र, अनेकशः, इतस्ततः, निषामुषे, संप्रति, अतीव, प्रसह्य, निशा, शिशिरतु, रुदन्ती, हसन्ती, भवदीय, हिमर्तु, लौह, विष्टर, नीयमान,
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“वीरायण' : कवि मित्रजी, “पृथ्वी पीड़ा", सर्ग-२, पृ.६३ "तीर्थंकर महावीर', कवि गुप्तजी, सर्ग-१, पृ.१४ वही, पृ.२३ वही, सर्ग-२, पृ.३६ वही, सर्ग-२, पृ.४३
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