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हिन्दी के महावीर प्रबन्ध काव्यों का आलोचनात्मक अध्ययन
गई, उसने भोगभूमि को कर्म भूमि में परिणत कर दिया।
गुणकर्म के आधार पर ऋषभदेव ने मानव व्यवस्था की और कर्म पुरूषार्थ पर खड़ा करके मनुष्य को स्वावलंबी बना दिया । प्रजा के हित के लिए लेख, गणित, नृत्य, गीत सो प्रकार की शिल्प कला आदि बहतर कलाएं पुरुषों की और चौसठ कलाएं स्त्रीयों की ' निर्माण की । सर्वप्रथम अपनी पुत्री ब्राह्मी को लिपि की शिक्षा दी और इस कारण वह लिपि आज तक ब्राह्मी लिपि के नाम से विख्यात है ।
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ऋषभदेवजी की सुनंदा और सुमंगला दो पत्निय थी । विवाह के पश्चात् ऋषभदेव का राज्यभिषेक हुआ। ३ छः लाख पूर्व से कुछ न्युन काल तक सुनंदा और सुमंगला के साथ विवाह संबंध से रहते हुए भगवान को संतानोत्पत्ति हुई । सुमंगला ने भरत और ब्राह्मी तथा सुनंदाने बाहुबलि और सुंदरी को युगल रूप में जन्म दिया । सुमंगला के कालान्तर में युगल रूप से ४९ बार में कुल ९८ पुत्रो को जन्म दिया। इस प्रकार प्रभु के १०० पुत्र और दो पुत्रियाँ उत्पन्न हुई । ' लोक जीवन की सुव्यवस्था करने के पश्चात् प्रजा का भार अपने पुत्रों को सोंपकर भगवान ऋषभदेव परिग्रह से विमुक्त हो क्षित हो गये ।
एक हजार वर्ष तक निरन्तर कठोर तपश्चचरण करने के पश्चात वे जिन वीतराग एवं पूर्ण ज्ञानी हो गये । तत्पश्चात् उन्होने समाज व्यवस्था और धर्मव्यवस्था करके मानव जीवन को एक प्रशस्त और उच्चतर ध्येय प्रदान किया । गृहस्थों के लिए अणुव्रतों का तथा साधुओं के लिए महाव्रतों का उपदेश दिया। भगवान के धर्मोपदेश की वह विमल स्त्रोतस्विनी अति दीर्घ मार्ग को पार करती हुई आज तक प्रवाहित हो रही है ।
तीर्थंकर नमः
अनासक्ति योग के प्रतीक । २१ वें तीर्थंकर नमिनाथ है। ऋषभनाथ के अन्नतर नमिनाथ का जीवनवृत्त जैनेतर साहित्य में उपलब्ध होता है । नमि मिथिला के राजा थे
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जम्बुद्वीप प्रज्ञप्ति: ऋषभ - चरित्र :
सन्दर्भ : सुशीलमुनिजी - " जैन धर्म " पृ. १४
तीर्थंकर महावीर पृ. ३० भाग-१
संदर्भ - हस्तीमलजी - "जैन धर्म का मौलिक इतिहास "पृ. १६
कल्पसूत्र किरणावली, १५१ - २
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