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- हिन्दी के महावीर प्रबन्ध काव्यों का आलोचनात्मक अध्ययन भगवान के पवित्र चरण-कमलों के आशीर्वाद से मूला सेठानी द्वारा बेडियों में जकड़ी हुई चंदना के पैरों में नूपुर सोनैया की वर्षा होने लगी। यह भगवान का अलौकिक अतिशय का ही श्रेय है -
बनी बेड़ियाँ नूपुर मनोहर, वेणिका का सुन्दर सन्धान । हुआ सेठ को द्रव्य देखकर, मन-ही-मन आश्चर्य महान। कौशाम्बी-नृप बोले आकर, इस धन पर मेरा अधिकार । हुई देववाणी, इस धन पर चंदनबाला का अधिकार ।'
*** प्रभु वन में एकग्र चित्त से ध्यान में लीन थे। एक ग्वाला भगवान के पास आकर बैलों की देखभाल करने का सौंपकर चला गया। वापिस लौटा और बैल न मिलने पर देखने गया। अंत में थक कर प्रभु के पास आनेपर बैलों को न देखा, तो क्रोध में आकर ध्यानस्थ मुनि के कानों मे कीले ठोकें । प्रभु ने असह्य पीड़ा को शांतिपूर्वक सहन किया। यह भगवान की समता की पराकाष्ठा थी। सहन करने का अत्याधिक बल पैदा करना, यह अतिशय से मिलता है -
प्रभु से पूछा उन ग्वालों ने, वृषभ कहा ? पर प्रभु थे मौन ! प्रभु को देखा मौन, ग्वाल क्रुध हुए बोले-तूं कौन ? कानों में ठोके फिर प्रभुके, कीले घातक तीक्ष्ण महान त्रिपुष्ठ भव का उदय हुआ था, सहा कष्ट वन शांति निधान ।
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दीक्षा के समय का प्रकृति के अनुकूल वातावरणः
वह अगरू धूम था फैल रहा उठकर ऊपर फैली सुगन्ध जल मिली वायु उससे आकर-३
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“चरम तीर्थंकर महावीर" : श्री विद्याचन्द्रसूरिजी, पद सं. १४८, पृ.३८ वही, पद सं.१५२, पृ.३८ "तीर्थंकर महावीर" : कवि गुप्तजी, सर्ग-३, पृ.१२२
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