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हिन्दी के महावीर प्रबन्ध काव्यों का आलोचनात्मक अध्ययन
१९९ पाँच महीने पच्चीस दिन के उग्र तपस्वी अभिग्रहधारी मुनि भगवान महावीर विचरण करते करते तीन दिन की उपवासी चंदना के घर आहार के लिए पधारे। चंदना ने विधिवत् श्रद्धापूर्वक आहार दिया । उसी क्षण देवताओं ने रत्नों की वर्षा की इस अतिशय का कवियों ने उल्लेख किया है।
बज उठे वाद्य तत्काल तभी रत्नों की वर्षा हुई वहाँ। उसे सेठ धनावह के घर परसोने की वर्षा हुई वहाँ।
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दिगम्बर मतानुसार उत्कृष्ट अभिग्रहधारी भगवान को सेठानी ने दिये हुए मिट्टी के पात्र में कौंदों भात (बासी भात)चंदना ने गोचरी में दिए। भगवान की कृपा से मिट्टी का पात्र स्वर्णमय बन गया और बासी भाँत उत्तम खीर रुप में परिवर्तित हो गई
कौंदो डाले चन्दना, कौंदो बनते खीर, महिमा है भगवान की, वीर बन गया धीर ॥२
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शराव या मुण्मय हेम हो गया, कदन्न पकवान्न हुआ तुरन्त ही, यतीन्द्र ने भी उपवास-पारणा बनी शुभा चंदन-तुल्य चंदना । ३
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मट्ठा कौंदों एकत्रित कर रखे जब प्रभु ने हाथों में, स्वादिष्ट खीर बन गई तभी उत्तम बातों बातों में।'
*** "श्रमण भगवान महावीर" : कवि योधेयजी, सोपान-७, पृ.२७२ “वीरायण' : कवि मित्रजी, सर्ग-१३, पृ.३१८ "वर्द्धमान' : कवि अनूपशर्मा, सर्ग-१५, पृ.४८७ "त्रिशलानन्दन महावीर" : कवि हजारीलाल, पृ.६४
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