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________________ हिन्दी के महावीर प्रबन्ध काव्यों का आलोचनात्मक अध्ययन * * * * * * * * पैरों के नीचे का भूमिभाग सम और रमणीय होता है । कण्टक अधोमुख हो जाते हैं । २. अमनोज्ञ शब्द, स्पर्श रस, रुप और गंध न रहती है। मनोज्ञ शब्द, स्पर्श, रस, रुप और गन्ध का प्रादुर्भाव होता है। उपर्युक्त आगम सूत्र के आधार पर लिखे गये चौंतीस अतिशयों के नाम कवियों अपनी कृतियों में सुंदर ढंग से चित्रित किये हैं । उन्होंने अपनी लेखनी द्वारा जन्म के समय के वातावरण का केवल ज्ञान के पश्चात् के और देवों द्वारा किये गये अतिशयों का अद्वितीय चित्रण किया है । "तीर्थंकर महावीर” काव्य में तीर्थंकर के जन्म के समय के अनुकूल वातावरण का सुंदर वर्णन किया है - ऋतुएँ अनुकूल और सुखदायी हो जाती है शीतल, सुखद और सुगंधितवायु एक योजन प्रमाण भूमिका चारों ओर से प्रमार्जन करती है । मेघ द्वारा रज का उपशान्त हो जाता है । जानु प्रमाण देवकृत पुष्पों की वृष्टि एवं पुष्पों के डंठलों का अधोमुख होता है । बरसने लगा सुगन्धित जल पुष्प की वर्षा थी अविरल सुगन्धित शीतल मन्ध बयार चल पड़ी खोल प्रकृति का द्वार _१ *** वन उपवन में सज्जित होकर आये रम्य ऋतुराज । डाल डाल पर नव किसलय दल मधुर फलों का सुंदर साज ॥ कुहू कुहू करती कोयलियाँ, मञ्झरियाँ का कर रसपान । विहग नाचते भ्रमर गूँजते, गाते मधुरिम स्वगात-गान ॥ २ *** १९५ "तीर्थंकर महावीर” : कवि छैलबिहारी गुप्त, सर्ग-१, पृ.२० "" 'चरम तीर्थंकर महावीर” : कवि विद्याचन्द्रसूरि, पद. ६०, पृ. १६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002766
Book TitleMahavira Prabandh Kavyo ka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyagunashreeji
PublisherVichakshan Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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