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हिन्दी के महावीर प्रबन्ध काव्यों का आलोचनात्मक अध्ययन
१९३ वास्तव में कवियों ने काव्य के अन्तर्गत करूणभाव, दयाभाव, क्षमाभाव, माता का ऋजुभाव, राजा का वात्सल्यभाव, महावीर का निर्वेद भाव, उपसर्ग कर्ताओं के क्रूर भाव और चंदना का त्याग भावों का अजोड़ चित्रण अंकित किया है। सच्चे रुप में कवियों ने प्रबन्धों में सभी रसों का चित्रण करके काव्य को निखारा है।
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अतिशय वर्णन अतिशयः
___ अतिशय अर्थात् विशेष चमत्कारिक घटनाएँ। प्रायः प्रत्येक महापुरूष का अवतारी पुरूष के जीवन के साथ ऐसी घटनाएँ जुड़ी होती हैं जो उसके महत्व को प्रगट करते हैं और प्रभाव में वृद्धि । जैन शास्त्रों में, पुराणों में तीर्थंकरों के ऐसे ही अतिशयों का वर्णन किया गया है। जैन दृष्टि से ये अतिशय चौतीस हैं। प्रायः सभी तीर्थंकरों के ये जन्म से निर्वाण तक होते हैं। चरम तीर्थंकर महावीर के इन अतिशयों का इन प्रबंध काव्योंमें भी सभी कवियोने वर्धमान महावीर की शक्ति प्रभाव आदि का उल्लेख किया है।
आगमों के अनुसार तीर्थंकरों के चौतीस अतिशय होते हैं जन्म से चार, केवलज्ञान के बाद पन्द्रह और देवकृत पन्द्रह अतिशय होते हैं । समयवायांग सूत्र के आधार पर चौतीस अतिशय निम्नलिखित है । जन्म जात चार अतिशयः
भगवान का जन्म से शरीर स्वस्थ और निर्मल होता है। उन का रक्त और मांस गाय के दूध के समान होता है। श्वासोच्छवास कमल की तरह सुगंधित होता है।
उनका आहार और नीहार दोनों प्रच्छन्न होते हैं। केवल ज्ञान के बाद पन्द्रह अतिशयः
योजन पर्यन्त सुनाई देनेवाला हृदयस्पर्शी स्वर होता है। अर्धमागधी भाषा में भगवान उपदेश देते हैं। अर्धमागधी भाषा का उपस्थित आर्य, अनार्य, द्विपद, चतुष्पद, मृग, पशु, पक्षी और सरिसृपों की भाषा में परिणत होती हैं तथा उन्हें हितकारी सुखकारी एवं कल्याणकारी प्रतीत होती है।
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समवाओ सुत्तं, सम्पादक-युवाचार्य महाप्रज्ञ, चौतीसवाँ समवाय सूत्र,-१, पृ.१८२
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