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हिन्दी के महावीर प्रबन्ध काव्यों का आलोचनात्मक अध्ययन बीभत्स रसः
____ यद्यपि महावीर सम्बन्धी प्रबंधों में बीभत्स रस नहिंवत् है। भगवान पर जो घोर उपसर्ग हुए उन वर्णनों में स्वाभाविक रुप से बीभत्स की झलक दिखाई दी है।
"श्री रघुवीरशरण" कृत "वीरायण" काव्य में बीभत्स रस का वर्णन चित्रात्मक रुप से किया है। बीभत्स रस का स्थायी भाव जुगुप्सा है -
कुछ भूत लोथों का उठा, नाली बहाते रक्त की, लड्डू बनाते मांस के, रबड़ी बनाते रक्त की।
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रौद्ररसः
रौद्र रस का स्थायी भाव क्रोध है। भगवान के जन्म से पूर्व चारों और अंधकार फैला हुआ था। बहनें लुटीं जा रही थी। मानव दानव बनकर तलवारों, भालों से हत्या कर रहे थे उसी क्रूरता का सजीव चित्रण कवि ने काव्य में किया है :
भाई के आगे बहिन लुटी, हत्यारों को कुछ होश न था। शिशुओं को भालों से गोदा, तलवारों को कुछ होश न था । मानवता नंगी डाली, धर्मान्धों की मनचाहीने। भारत माता को घेर लिया, धर्मों की घोर तबाही ने ॥२
*** एक बार भगवान ध्यान में लीन थे। एक ग्वाला अपने बैलों को लेकर उधर आया। भगवान ध्यानस्थ अवस्था में वृक्षों के नीचे खड़े थे। ग्वाला बैंलो का ध्यान रखने का कहकर चला गया। वापिस लौटने पर जब ग्वाला ने बैलों को न देखा तो तपस्वी मुनि पर असह्य क्रोध किया। इन्हीं भावों के अनुकूल रौद्र रस का चित्र कवि ने काव्य में वर्णित किया है -
मूढ़ हृदय में क्रोध जगा के रस्सा बैलों का ही लोके
“वीरायण" : "कवि रघुवीर शरण", "दिव्य दर्शन", सर्ग-११, पृ.२८० वही, "पृथ्वी पीड़ा"सर्ग-२, पृ.६४
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