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हिन्दी के महावीर प्रबन्ध काव्यों का आलोचनात्मक अध्ययन तोता-मेना, सारस जोडी, कल कपोत के नव जोडे चुप चुप रोते गुमसुम होते, नीचे को अनन मोडे । फूट पड़ी थी घटा कहाँ है, ज्योति जाल उस चपलाका। निशा साँवरी क्रन्दन करती, कहाँ तेज है चन्द्र कलाका॥
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कवि ने चंदना को वेश्या के घर बेचे जाने पर, उनके साथ किये गये क्रूर व्यवहार को करूण भावों में व्यक्त किया है -
वेश्या ने कोड़ा मंगवाकर चंदन बाला पर वार किया, हर बार बार करती थी वह लेकिन इसने इन्कार किया, बाला रोती थी जोर जोर, जुड़ गए हजारों नर-नारी, यह दृश्य देखकर ऋषभसैन के दिल में बढ़ी दया भारी ।।
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कविने भगवान महावीर काव्य में निर्वाण के पश्चात् गौतम आदि शिष्यों का करूण विलाप तथा प्रकृति के शौकमय वातावरण का दारूण्य चित्रण अंकित किया है
होकर अनाथ विकला-सी वह शिष्य मण्डली रोई दुःख के अपार सागर में वह मूढ़ बनी-सी खोई - ३
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सूरज ने छिपा लिया मुख बादल को ओट बनाकर रो उठे दिशा वन उपवन रो उठा विकल हो अम्बर
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“भगवान महावीर" : कवि शर्माजी, “सन्यस्तसंकल्प", सर्ग-१०, पृ.१२४ "त्रिशलानन्दन महावीर" : कवि हजारीलाल, पृ.६२ "तीर्थंकर महावीर" : कवि गुप्तजी सर्ग-८, पृ.३५१ वही
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