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हिन्दी के महावीर प्रबन्ध काव्यों का आलोचनात्मक अध्ययन किकिनियाँ कलखसा माताके मन आनन्द भरती
*** झूम झनन झून झूनियाँ बजती पैरों में पैजनियाँ लाला चलता चाल घुटनियाँ
*** बालक माता से कहता है कि हे माँ ! मुझे चन्दा दे दो, मैं खेल खेलूंगा
मचल गया शिशु दे माँ चन्दा खेल रचाऊंगा गल फन्दा॥३
*** देदे गेंद चन्दनी डंडा बना कलम यह ले सरकंडा॥
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"कवि हजारीलाल कृत "त्रिशलानन्दन" काव्य में भी बालक माता के साथ तुतलायी भाषा में बोलना, और माता के साथ हँसी-मझाक करना, बालक किस प्रकार बैठता है, उठता है, खाता है, पीता है और सोता है आदि बाल चेष्टाओं का सूक्ष्म निरिक्षण काव्यों में किया हैं। बालक के हाव-भावों को देखकर माता का उनके प्रति किस प्रकार वात्सल्यभाव उमड़ता है वह देखिए -
दुतिया का चाँद बढ़े, जैसे ऐसे प्रभु बढ़ते जाते थे, माता के साथ बात करते, तो अक्सर ही तुतलाते थे, रत्नों की धूल उठा करके, हँसकर सरपर दुलकाते थे, गिरकर उठते फिर चल देते, क्रियाए कई दिखाते थे।"
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"भगवान महावीर" : कवि शर्माजी, “शैशवलीला', सर्ग-४, पृ.४८ वही, पृ.४९ वही वही “त्रिशलानन्दन' : कवि हजारीलाल पृ.३८
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