________________
१८५
हिन्दी के महावीर प्रबन्ध काव्यों का आलोचनात्मक अध्ययन
कोई स्नान करा मस्तक पर केशर का चंदन कोई लगा डिढौना-पहिना देती दिव्य वसन -१
*
*
*
घुटनों के बल गिरे सरकते
चले पेट के बल रत्न खिलौने हाथी घोड़ा
पाना था केवल - २
***
प्रायः सभी कवियों ने प्रभु की बाल्यावस्था का सौन्दर्य एवं शारीरिक चेष्टाओं का ही नहीं, बल्कि उनकी अन्तः प्रकृति के भी सजीव और हृदयग्राही चित्र अपनी काव्य कुशलता से अंकित किये हैं। कवि डॉ. रामकृष्ण शर्माजी के वात्सल्य चित्रण में ममतामयी माता के स्नेहपूर्ण हृदय की व्याकुलता और औत्सुक्य की व्यंजना का सुंदर आलेखन हुआ है। जिस समय माता त्रिशला मुदित होकर पलने में झूला झूलाकर मधुर स्वरों में लोरियाँ गा रही है, उस समय के वात्सल्य का कविने सजीव चित्रण किया है -
गाती रसमय मुदित लोरियाँ आओ परियाँ ! नवल गोरियाँ आरी निदिया! प्यारी निंदिया! माथे सोहे मोहन बिंदिया।
***
वीर प्रभु घुटनों के बल पर चलने का अनुपम चित्रण देखिए -
छम छम पायल बजती
on & in
"तीर्थंकर महावीर' : कवि गुप्तजी, सर्ग-१, पृ.२८ वही "भगवान महावीर' : कवि शर्माजी, “शैशवलीला', सर्ग-४, पृ.४६ वही, पृ.४७
x
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org