________________
१८४
हिन्दी के महावीर प्रबन्ध काव्यों का आलोचनात्मक अध्ययन कविने यशोदा के विरह का विविध प्रतीकों के द्वारा चित्रांकन किया है। उन्होने चाँदनी, संध्या, बिजली, लहर आदि को मिलन, विरह, प्रफुल्लता उदासी, वेदना, उल्लास आदि के प्रतीक बनाकर काव्य में चित्रण किया है । यशोदा प्रिय सखी को सम्बोधन करके कहती है
देख अरी कुछ सूरज सा है, करता आता शुभ्र प्रकाश। लगता है मेरे स्वामी ही पहुंच रहे हैं नभ के पास ॥१
*** देखो री वह चन्द्र है, कला लगी है साथ। मैं ऐसी हत भागिनी त्याग गये हैं नाथ ॥२
***
हाय सखी ! कैसे कहूँ ? सुखद स्वप्न प्रिय साथ। गुड़ी तनी नभ में कहीं, शिथिल डोर है हाथ ॥३
*** कवि ने प्रकृति को ससीम से असीम की ओर व्यष्टि से समष्टि की ओर विकसित किया है। प्रेम काव्यों में पुष्ट, प्रांजल एवं गंभीर होकर कवि की अन्तर साधना के रुप में प्रस्तुत हुआ है। जिसके माध्यम से कवि निजी जीवन के अनेक मानवीय गुणों का विकास करता है। वात्सल्य रसः
___ वात्सल्य के सम्राट कवि सूरदास की भाँति डॉ. गुप्तजी, डॉ. शर्माजी एवं कवि योधेयजी आदि कवियों ने वात्सल्य की अवर्णनीय सुन्दर झांकी काव्य में प्रस्तुत की हैं। देव-देवियाँ, इन्द्र-इन्द्राणी सभी प्रभु की सेवा में रत हैं। कोई प्रभु के अंगोपांग को सुसुज्जित करती हैं तो कोई खिलौने, कोई मस्तक पर स्नान कराकर केशर का चंदन लगाती है तो कोई आँखो में अंजन देती हैं। इस प्रकार भगवान को दिव्याभूषणों से सज्जित करने का तथा अंगोपांग की चपलता का चित्ताकर्षक चित्रण कविने काव्यों में वर्णित किया है -
"भगवान महावीर" : कवि शर्माजी, “यशोदा विरह", सर्ग-१५, पृ.१६५ वही, पृ.१६४ वही, पृ.१६३
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org