________________
हिन्दी के महावीर प्रबन्ध काव्यों का आलोचनात्मक अध्ययन चोबीस तीर्थंकर :
___ प्रस्तुत अवसर्पिणी काल में चौबीस तीर्थंकर हुए है । चौबीस तीर्थंकरो के सम्बन्ध में सबसे प्राचीन उल्लेख दृष्टिवाद के मूल प्रथमानुयोग में था, पर आज वह अनुपलब्ध है। आज सबसे प्राचीन उल्लेख समवायाङ्ग, कल्पसूत्र, आवश्यक नियुक्ति ४ आदि में मिलता हैं। इसके पश्चात् चउपन्न महापुरिसचरियं, त्रिषष्ठिशालकापुरुष चरित्र, महापुराण, उत्तर पुराण, आदि ग्रंथो में विस्तार से प्रकाश डाला गया है। स्वतंत्र रूप से एक-एक तीर्थंकर पर विभिन्न आचार्यों ने संस्कृत, अपभ्रंश, प्राकृत, गुजराती, राजस्थानी, हिन्दी व अन्य प्रान्तीय भाषाओंमें अनेकानेक ग्रंथ लिखे हैं व लिखे जा रहे हैं।
जैन इतिहास में त्रिषष्ठ शलाका पुरुषों के वर्णन है। इनमें से चौबीस तीर्थंकर ऐसे शलाका पुरुष है, जिन्होंने मानव-सभ्यता के उस काल में ही एक क्रमबद्ध रूप देने का प्रयत्न किया। तीर्थंकरो से पूर्व चौदह कुलकरों का उल्लेख है। शलाका पुरुषोमें से प्रथम तीर्थंकर ऋषभनाथ, इक्कीसवें नमिनाथ, बाईसवें नेमिनाथ, तेईश्वें पार्श्वनाथ तथा चौबीसवें वर्धमान महावीर पुराण व इतिहास की पहुंच में हैं। शेष तीर्थंकरो के उतने ऐतिहासिक प्रमाण उपलब्ध नहीं है। ऋषभदेवः
चौबीस तीर्थंकरो में सबसे प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव हैं। उनके अस्तित्व को सिद्ध करने के लिए आगम व आगमेतर साहित्य ही प्रबल प्रम में हैं। जैन दृष्टि से भगवान ऋषभदेव वर्तमान अवसर्पिणीकाल के तृतीय आरे के उपसंहार काल में हुए है। ' चौबीस में तीर्थंकर भगवान महावीर और ऋषभदेव के बीच का समय असंख्यात वर्ष का
|
om F
(क) समवायाङ्ग सूत्र १४७ (ख) नन्दीसूत्र, सूत्र-५६ पृ.१५१-१५२, पूज्यश्री हस्तिमलजी द्वारा संपादित समवायाङ्ग सूत्र -२४ कल्पसूत्र तीर्थंकर वर्णन आवश्यक नियुक्ति ३६९ आचार्य शीलाङ्क, चोप्पन्नमहापुरिसचरियं-अनुवाद आ. हेमसागर आचार्य हेमचन्द्र-जैन धर्म सभा, भावनगर आचार्य जिनसेन-भारतीय ज्ञानपीठ, वाराणसी आचार्य गुणभद्र-भारतीय ज्ञानपीठ, वाराणसी (क) जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति (ख) कल्पसूत्र
;
oi
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org