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हिन्दी के महावीर प्रबन्ध काव्यों का आलोचनात्मक अध्ययन
उसकी कूर्च में पूरित था
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मौलिक भाव अटूटा-सा ॥
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कविने राजकुमार वर्धमान और राजकुमारी - यशोदा के दाम्पत्य जीवन का कल्पना की तूलिकासे रंग भरकर रति भाव का अलौकिक चित्रण अंकित किया हैदुल्हन का जो रूप निहारा दुल्हा ने
हृदय उछलकर, जैसे मिलने को भागा ।
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एक घड़ी ऐसी थी आई जीवन में सागर नदिया में मिलने को था भागा।
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काया में काया के घुलने की वेला आलिंगत हों-जैसे धरती और गगन ।
एक अलौकिक सुख का पुलकित भाव प्रबलजिस में पुरुष और नारी हों प्रेम-मगन ।
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रस में सरिता सागर में थी, सुख में दो तन थे एकरुप । तन के महलों मे लीन हुए, रानी में खोये हुए भूप ॥ रानी राजा के चरण चूम, बोलो प्रिय तुम जल में प्यासी । पर प्यास हमारी नीर बने, उपवन के फूल न हों बासी ॥ ४
प्रेम दो प्रकार का होता है - लौकिक और अलौकिक । राजकुमारी यशोदा का प्रेम लौकिक धरातल से उठकर अलौकिक धरातल पर प्रतिष्ठित हो गया था। इस में समूचा आत्म-समर्पण होता है और प्रेम के प्रत्यागमन की भावना नहीं रहती है । हिन्दीकवियों ने कवि सूरदास की भाँति श्रृंगाररस का अनोखा चित्रण काव्य में किया है । कवि द्वारा पत्नी यशोदा की विरह वेदना का करुणामय चित्रण देखिए ।
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'श्रमण भगवान महावीर” : कवि योधेयजी, “विविध विचार", सोपान - ३, पृ. ९९ वही, "गृहस्थ में", सोपान - ३, पृ. १०५
वही, "विविध विचार", सोपान - ३, पृ. १०५
"वीरायण"
: कवि मित्रजी, “जन्मज्योति”, सर्ग - ४, पृ. ८९
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