________________
१७९
हिन्दी के महावीर प्रबन्ध काव्यों का आलोचनात्मक अध्ययन
पावापुर के उद्यान माहिं आकर प्रभु ध्यान लगाया है, ज्यों ही दिव्य ध्वनि बंद हुई सब समोरण बिखराया है, लेकर के प्रतिमा योग प्रभु कर गई बहत्तर प्रकृति नाश, चौदहवें गुण स्थान मांहि कर लिया प्रभु ने तभी वास, '
***
महावीर भगवान का, हुआ यहाँ निर्वाण उड़ती यहाँ सुगन्ध है, दर्शन देते प्राण
***
महा प्रभु ने अन्तिम यह मौन, बंद ये राजिव लोचन शान्त । मोक्ष का खुला शुचि भान, वायु मंडल भी बना प्रशान्त । इन्द्रियों की अवरोधित राह, बंद थे सब भौतिक व्यापार । अनिल का राषित साँस प्रवाह, चेतना का सुअनन्त प्रसार ॥३
***
श्रृंगाररसः
श्रृंगाररस का स्थायीभाव रति है। भगवान महावीर की पत्नी राजकुमारी यशोदा के संयोग और वियोग श्रृंगार का कवि ने काव्य में अवर्णनीय चित्रण किया है। उन्होने काव्य में त्रिशला के अंगोपांग की सौन्दर्यता का सजीव चित्रण किया है
सु-आनना सुन्दर-चन्द्र-कान्त-सी, सुकेशिनी नील-शिखा-समान थी, सुपादसे आरूण पद्म-राग-सी, सुशोभिता रत्न-मयी सुभीरू थी।
***
चित्रकार या चतुर कलाविद उसका शिल्प अनूठा था।
I
ai r
"त्रिशलानंदन महावीर" : कवि हजारीलाल, पृ.७६ “वीरायण": कवि मित्रजी, “अनन्त', सर्ग-१४, पृ.३४१ “भगवान महावीर" कवि शर्माजी, “पावापुर निर्वाण', सर्ग-२०, पृ.२० "वर्धमान" कवि अनूप शर्मा, सर्ग-१, पृ.४९
in
x
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org