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हिन्दी के महावीर प्रबन्ध काव्यों का आलोचनात्मक अध्ययन
गीत गीत में प्रीत थी, गीत गीत में जीत
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साधु सन्तों ने नमन किया, फल फूल चढ़ाये पेड़ों ने। पग पग पर बढ़ते गये पैड़, पग पग बढाए पेड़ों ने ।। शेरो ने किया प्रणाम कहा, भगवान सिंह कुल के दादा। ये अपने बाबा पड़बाबा, अति वीर सिंह कुल के दादा ॥२
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रिमझिम रिमझिम वर्षा आई, प्यासे पेड़ों को नीर मिला। हँसती गाती वर्षा आई, वन-उपवन का हर फूल खिला॥ वन वन में वन सम्पदा बढी, भर गई अन्न से धरा वरा ।
जब तप से गंगा आती है, हो जाता है संसार हरा ॥३ समोवशरण में शांतिः
सब के सब निर्भीक भाव से, हिंसक पशु भी शांत भाव से। उनके निकट आनकर बैठे, मन में सब के मृदुल भाव थे। . *** सुर नर मुनि जन देवगण, जल थल नभ चर जीव। समवशरण में सज गये, नृपति मुकुट धर जीव
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. “वीरायण" : कवि मित्रजी, "दिव्यदर्शन", सर्ग-११, पृ.२७४ वही वही, पृ.२७६ "श्रमण भगवान महावीर" : कवि योधेयजी, सोपान-५, पृ.१७७ “वीरायण" : कवि मित्रजी, "ज्ञानवाणी", सर्ग-१२, पृ.२९८
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