________________
१६७
हिन्दी के महावीर प्रबन्ध काव्यों का आलोचनात्मक अध्ययन
असूर गर्जन किलकारी मार लगा होने मानो पतझार वरसती थी नयनों से ज्वाल लगे फूफकार मारने व्याल -
***
विभिन्न स्थानों में भ्रमण करते हुए अनशन तप, कठोर साधना, कठिन परिषहों आदि प्रसंगो का गहन चित्रण किया है । ग्वालों द्वारा भगवान को असह्य पीड़ा करना करुण दृश्य कविने काव्य वर्णित किया है -
मूढ हृदय में क्रोध जगा के रस्सा बैलों का ही लाके। प्रभु पर खींच चलाया तत्क्षण अपने-पन से होकर उन्मत्त । २
***
उसको क्रोध जगा वह प्रभु को मन-ही-मन धिक्कारा। कठिन काल की कील श्रवण से ठोंकी वह हत्यारा॥
***
भगवान महावीर विविध स्थानों में भ्रमण करते हुए ऋजुकूला नदी के पास पहुँच गये । प्रकृति के सौरभ को देखकर भगवान का मन प्रसन्नता से भर गया। जृम्भि का गाँव के बाहर सरिता किनारे एक रत्न शिला की ओर भगवान बढने लगे, जिसके पर वृक्ष की शीतल छाया पड़ रही थी। मंद-मंद हवा से पत्तियाँ हिल रही थीं। इस मधुमय वातावरण में भगवान का ध्यान अधिक आत्म-दृढ हो रहा था। अवधिपूर्ण होने पर चार धाति कर्मों को नष्ट करके भगवान केवलज्ञान को प्राप्त हुए। कविने केवलज्ञान के बाद का रमणीय व सौम्य प्रकृति का वर्णन काव्य में किया है -
له
"तीर्थंकर महावीर" : कवि गुप्तजी, सर्ग-४, पृ.१५० "जय महावीर" : कवि माणकचन्द, दशमा सर्ग-पृ.१०३ वही, सर्ग-१३, पृ.१२०
سه
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org