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हिन्दी के महावीर प्रबन्ध काव्यों का आलोचनात्मक अध्ययन
१६५ देवों को बुलाकर भगवान का अभिषेक एवं जन्मोत्सव मनाने के लिए चल दिये। अभिषेक के लिए, प्रस्थान करते हुए भगवान ऐरावत हाथी पर बैठे हुए दिव्य मनोहर सुंदर ऐसे दिख रहे थे मानो इस वसुन्धरा का वरदान हो । जन्मोत्सव का कविने बुद्धि कौशल से रमणीय चित्रण काव्य में किया है -
जा रहे मोद में भर सुमेरू पर्वत पर जय हो ! जय हो ! जय ध्वनि से गुंजित अंबर उल्लसित सभी हर्षातिरिक मन वाणी तन रोमांचित ले चली सहज इन्द्राणी ।
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छा रहे थे अम्बुद अभिषेक
मयूरों से सुर नाचे देखे घेर कर बैठ गये नगराज
सज गया दिक्पालों का साज- २
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कवियों ने महावीर काव्य में भगवान महावीर के जीवन प्रसंगो का मार्मिक वर्णन प्रकृति के माध्यम से किया है। निर्जन वन में कठोर साधना का अनुभव होना, घोर उपसर्गो को सहन करना, धूप-छाया, शीत-उष्ण आदि कष्टों को समभावपूर्वक सहन करते हुए साधना के मार्ग पर आरूढ होना, आदि का काव्य में चित्रण हुआ है
ग्रीष्म दिवस अति तप्त, सूर्य था प्रस्तर जैसे अंगारा। वही हुए असीन उर्द्व मुख ज्यों, प्रकाश की दिवि धारा ॥३
*** बैठ तरु तल समाधि में किया करते तप में तन क्षीण
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"तीर्थंकर महावीर" : कवि गुप्तजी, सर्ग-१, पृ.१५ वही, पृ.१६ "भगवान महावीर" : कवि शर्माजी, “तपस्या", सर्ग-११, पृ.१२७
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