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हिन्दी के महावीर प्रबन्ध काव्यों का आलोचनात्मक अध्ययन वातायन से चलकर आया
पवन हठीला खेल खेलता अलक जाल से
खड़ा रंगीला'
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जन्म के समय:
कवि प्रकृति का चित्रांकन बड़े ही सजीव रुप से प्रस्तुत करता है। भगवान के जन्म के समय जड़ और चेतन प्रकृति में चारों ओर हर्षोल्लास छा गया। प्रकृति में सब ओर से शुभ शुकन होने लगे । सभी सुखसागर की लहर में बहने लगी। सोने की चिडिया मुंडेरों पर प्रातः काल में चहकने लगी, मोर नृत्यगान करने लगा। मन को लुभानेवाला शीतल सुगंधित पवन धीरे धीरे चलने लगा। इस प्रकार कविने काव्य में प्रकृति के अनुकूल जन्म के समय का वास्तविक चित्रण किया है -
दीप्ति मान थी सभी दिशा निर्मल-निर्मल भूसे समीर उड़ चला गगन की ओर विकल माता त्रिशला ने दिया जन्म हो गया प्रसव अवतरण धरा पर वर्धमान प्रभुका अभिवन- २
__ *** पेड़ो की फुनगी पर चिड़िया
गीत मनोहर गाती। मलियानिल की पुरवाई सी
हवा गंध ले आती॥३
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वीर भगवान के जन्म से गगन में मधुर ध्वनि बजने लगी । पुष्पों की वर्षा हुई। विश्व में सर्वत्र ही सुख की किरणें फैलने लगी। इन्द्र का सिंहासन कम्पित हुआ। इन्द्र सभी
“तीर्थंकर महावीर" : कवि गुप्तजी, सर्ग-१, पृ.११ वही, पृ.१३ "जय महावीर' : कवि माणकचन्द, सर्ग-४, पृ.४२
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