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हिन्दी के महावीर प्रबन्ध काव्यों का आलोचनात्मक अध्ययन अन्य पुरातत्व संबंधी साम्रगी भी तीर्थंकर परंपरा की पुष्टि करती हैं। वैदिक संस्कृति में ही वेदों को सर्वोपरि महत्व देकर मानव-ज्ञान की पूर्ण प्रतिष्ठा नहीं हुई है, अपितु श्रमण संस्कृति में भी वीतराग, हितोपदेशी और सर्वज्ञ तीर्थंकर की प्रतिष्ठा को महत्व प्रदान किया हैं। दीपक स्वयं प्रकाशित होता है और दर्पण स्वभावतः स्वरूपावलोकन का अवसर प्रदान करता है । इसी प्रकार तीर्थंकर भी समस्त सांसारिकता से उपर उठकर मानवता का संदेश देते हैं।
___ भारतीय संस्कृति को परिपुष्ट एवं संवर्धित करने में एवं इसके स्वरूप निर्माण में जैन संस्कृति का महान योगदान है। साहित्य, कला, संगीत, चित्रकला एवं मानवमूल्यों के प्रति आस्था इत्यादि में जैन संस्कृति की बड़ी भारी देन हैं। जैन धर्म की विचारधारा प्राग्वैदिक है इसके प्रमाण प्राप्त होते हैं। ऋषभदेव के विषय में अनेक खोजपूर्ण प्रमाणिक तथ्य प्राप्त हुए हैं। मोहन जोदड़ो से प्राप्त चित्रों की मुद्रायें इसका प्रमाण हैं। जैन मतानुसार चौदह मनु हुए है तथा अन्तिम मनु नाभिराज थे तथा ऋषभदेव इन्हीं के पुत्र थे जिन्होंने हि समस्त संसार को असि, मसि, कृषि एवं लिपि विद्या की शिक्षा दी।
__ वेद संसार के प्राचीनतम ग्रंथो में माना गया है तथा चारों वेदों में ऋग्वेद सर्वप्रथम है । इन वेद ग्रंथो मे श्री ऋषभदेव, श्री अजितनाथ व. श्री अरिष्टनेमि तीनों तीर्थंकरों का वर्णन है । ऋग्वेद में एक स्थान पर भगवान ऋषभदेव को पूर्वज्ञान का प्रतिपादक और दुःखनाशक कहा गया है। 'ऋग्वेद में ऋषभदेव को ऋषि भी कहते है। श्रीमद् भागवतपुराण में ऋषभदेव को जनता का कल्याण करने के लिए अवतरित हुआ माना गया है। इस प्रकार वेदों, पुराणों तथा बौद्ध ग्रंथों में भगवान ऋषभदेव का वर्णन है। जिससे प्रमाणित होता है कि वे श्रमण और ब्राह्मण संस्कृति के सर्वप्रथम आदि पुरूष हैं। इस बात का प्रमाण मिलता है कि इ. पू. प्रथम शताब्दि में प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव की पूजा होती थी। भागवतपुराण जिसका १८ पुराणों में महत्वपूर्ण स्थान है ,
असूतपूर्वा वृषभो ज्यायानिमा अरयशुरूधः सन्ति पूर्वीः।। दिवो न पाता विदथस्य धीभिः क्षत्रं राजाना प्रति वो दधाथे। ऋग्वेद ५२-३८ तन्मयय॑ देवत्व सजातमनः । ऋग्वेद ३१/१७ नित्यानुभूतनिजलाभ निवृत्ततृष्ण: श्रेयस्यतद्रचनया चिरसुप्तबुद्धेः। लोकस्य यः करुणाभयात्मलोकमाख्यनमो भगवते ऋषभाय तस्मै । श्रीमद् भागवत ४/ ६/१९/५६९
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