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हिन्दी के महावीर प्रबन्ध काव्यों का आलोचनात्मक अध्ययन
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सागर चरण परवार रहा है, सुरभित सरिताएँ गाती हैं । अम्बर भारत का गौरव है, धरती भारत की थाती है ॥ १
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वास्तव में कविने आलम्बन के माध्यम से चेतन-अचेतन प्रकृति का सजीव चित्रण अंकित किया है। हमारी परिस्थिति जीवन का आलम्बन है, अतः उपचार से वह हमारे भावों का भी आलम्बन है।
कवि ने काव्यों मे परिस्थिति का पुरा ध्यान रखा है वह पार्श्ववर्ती दृश्यों के मध्य ही प्रायः आलम्बन की प्रतिष्ठा करता है । कविने काव्य में तपोमय भारतभूमि तथा उसके सौन्दर्य का सुंदर चित्रण किया है
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उन्नत शीश हिमाभ्रहिमालय, सूर्य सुनहरा मुकुट भाल पर । परिक्रमा कर रहा हिमानिल, यहाँ नाचते कृष्ण व्याल पर ॥ २
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ऐसे उत्थानों का भारत, अर्चित है झरनों के जलसे । यह देश महावीरों का है, वट वृक्ष बना तप के बलसे ॥ यह वन है खिले गुलाबों का फूलों में कांटे बड़ेबड़े । यह देश सुगन्धित फूलों का जब फूल छुवे तब शूल गड़े ॥
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अति प्राचीन भारत देश के मध्य स्थित कुण्डलपुर नगरी की शोभा का वर्णन कवि ने बड़ा ही मनोरम किया है। चारों ओर से दृढ कोट से घिरी हुई यह नगरी है । गगन चुम्बी मकान, चारों दिशाओं में तोरण बंधे हुए हैं। स्वर्ण, चाँदी, हीरा माणेक, धन धान्य आदि से यह नगरी परिपूर्ण व रमणीय है,
अवतीर्ण हुए हैं भारत में, शंकर तीर्थंकर मुनि ज्ञानी इन्द्रासन की रक्षा करते निज अस्थिदान कर ऋषिदानी ॥
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"वीरायण" : कवि मित्रजी, "पुष्प प्रदीप", सर्ग - १, पृ. २७
वही, पृ. २८
वहीं,
पृ. २७
" तीर्थंकर महावीर " : कवि गुप्तजी, सर्ग-१,
पृ. ८
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