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हिन्दी के महावीर प्रबन्ध काव्यों का आलोचनात्मक अध्ययन
वह जाति भेद के नाशक समता का पाठ पढाते बढ चले पन्थ में आगे दुखियों को गले लगाते
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भगवान का सच्चा उपदेश यही था कि मानव-मानव भाई हैं। मानव के बीच व्यर्थ धृणा की खाई मत खोदों । प्रेम की वर्षा करो। जब मानव के हृदय में यह भावना व्याप्त हो जाती है तब ही व्यक्ति अच्छे समाज का, राष्ट्र का निर्माण कर सकता है। कविने काव्य में भगवान महावीर के दया, प्रेम, ममता, करूणा, आदि को प्रस्थापित कर के विश्व को "जीओ और जीन दो” का महान संदेश दिया। उन्होंने जनसादारण को सम्बोधन करते हुए लिखा है कि दूसरों की उन्नति और भलाई करना चाहते हो तो स्वयं अपनी आत्मा को “बल्ब" की तरह प्रकाशमान कर लो तभी तुम्हारा हृदय "ग्लोब" की भाँति चमकेगा। सर्वप्रथम तुम्हारी आत्मा के प्रस्ताव, अन्तर की ध्वनि दिव्य बनेगी तब तुम सच्चे महावीर बन सकोगे।
इस प्रकार कविने लेखनी द्वारा महावीर के सामाजिक और आध्यात्मिक दोनों ही क्षेत्रो में वास्तविक जीवन-दर्शन का उद्घोष जनता के समक्ष रखा है। अतः कवियों के काव्यों के द्वारा महावीर के आदर्शों एवं सिद्धांतो को जन-मानस तक पहुँचाने का प्रयास किया है वह अनुमोदनीय है। इस प्रकार का माध्यम उन्होंने प्रकृति को बनाया।
भगवान महावीर काव्यों में कवि ने देश के प्राकृतिक सौंदर्य, उसकी नदियों, घाटियों, पर्वतों, खेतों, वनो आदि सभी का सुंदर चित्रण अंकित किया है। जैसे गंगायमना बह रही है। इस में सुंदर हरे भरे खेत है। नर्मदा की लहरों में एक करुणा का संगीत है। देश की काली माटी की उजली गोद में कृतियों के पौधे लगे हुए हैं, जिस में से वेदकमाओं की गंध बह रही हैं। भारत का यश सर्वत्र व्याप्त है। यह संतो का देश है। इसके पर्वत शिखर नभ को मौन संकेत दे रहे हैं। पवन से झूमते वन हरे भरे हैं। भारत को प्राकृतिक सौंदर्य का अनूठा चित्रण कविने काव्य में संवारा है -
"तीर्थंकर महावीर' : कवि गुप्तजी, सर्ग-८, पृ.३३९
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