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________________ १६० हिन्दी के महावीर प्रबन्ध काव्यों का आलोचनात्मक अध्ययन का प्रतिबिंब देखा और उसके विकल मनने प्रकृति की गोदमें स्वयं को भुला देने में ही सुख और शान्ति का अनुभव किया । प्रकृति उनकी प्रेयसी बन गई। इन कवियों ने दार्शनिक दृष्टि से प्रकृति के अचेतन तत्वों में चेतना भर दी । प्रकृति केवल जड़ पदार्थ नहीं है, अपितु वह एक रहस्यमयी शक्ति है, जो संसृति का संचालन करती है । जैसे... I धरती पर उतर उतर कर किरणें भी रास रचाती बिखरे मुक्ता दल लेकर प्रकृति का साज सजाती - *** गीतों की बांसुरिया पर उठती रागनियाँ प्यारी प्रियतम को बुला रही ज्यों छन्दों की राजकुमारी - २ *** भाव की चरम परिणति रस की विविधता प्रबंध काव्यों में दृष्टि गोचर होती है । मनुष्य से लेकर कीट, पतंग, वृक्ष, नदी, पर्वत आदि सृष्टि का कोई भी पदार्थ आलम्बन बन सकता है । जिस के काव्य में सृष्टि के विस्तृत प्रांगण से जितनी अधिक वस्तुएँ गृहित होगी वह उतना ही महान कवि होगा। उसने चेतन-अचेतन, क्षुद्र - विराट्, मानव-दानव, पशु-पक्षी, शुभ-अशुभ, राजा-रंक सभी को समस्त विभिन्नता के साथ अपनाया है । " तीर्थंकर महावीर” काव्य में कवि भगवान की अमृतमयी वाणी का उद्घाटन करते हुए लिखते है . २. ३. कहते थे खुले हृदय से सब सृष्टि एक है भाई सब का है एक नियामक यह देख सभी ने पाई - *** "तीर्थंकर महावीर” : कवि गुप्तजी, सर्ग-८, पृ. ३३६ वही वही, पृ. ३३९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002766
Book TitleMahavira Prabandh Kavyo ka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyagunashreeji
PublisherVichakshan Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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