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________________ १५६ हिन्दी के महावीर प्रबन्ध काव्यों का आलोचनात्मक अध्ययन नारी के विविध रूपः वर्तमान हिन्दी-कवियों ने काव्य के अन्तर्गत नारी को शक्ति, अबला आकर्षण, आधुनिक, कुलवधू, माता, अमृत, चंचल, आदर्श, साहसिक तथा वीर आदि नानाविध रुपों में अंकित किया है। राष्ट्रीय रचनाओं में कवि नारी को शक्ति रुप स्वीकार करता है। उसकी कल्पना में भी वह विपथगा बनकर; कभी त्याग के रुप में और कभी क्रान्तिकारीणी रणचंडी के रुप में, अवतरित होती है। यही रुप देशवासियों को जागृत बनाने के लिये उसने स्वीकार किया। भारतीय संस्कृति में नारी को अबलारुप में ही विशेष चित्रित किया गया है। आंसू ही उसकी निधि है। और त्याग ही उसका सर्वस्व। प्रायः सभी कवियों ने किसी न किसी रुप में उसके इस रुप को स्वीकार किया है। कवि “योधेयजी" काव्य में नारी चंदनबाला का अबला रुप का वर्णन करते हुए लिखते है कि बंधन युत वह सुभग हंसिनी मौन मौन ही रोती थी। अपने गौरव अश्रुजल से होकर पद को धोती थी भोजन अति सामान्य फेंक देते थे कारावास में। अनगिन पीड़ा के पिशाच दुःख देते उस आवास में।' *** चटका डाले नारी के हाथों के बन्धन मुक्त हुई वह अबला जो करती थी क्रन्दन ॥२ *** नारी प्रकृति का अंश है जो युग-युग से पुरूष के आकर्षण का केन्द्र रही है। उसके सौंदर्य ने पुरूष को सदैव पराजित किया है, और प्रेरणा भी दी है। नारी के जिन विविध रुपों की चर्चा कवि ने अपने काव्यों में ही की है, उसमें वह आधुनिक के रुप का चित्रण अवश्य करता है, परन्तु ऐसी नारी के प्रति उसकी कोई सहानुभूति नहीं है। उसकी दृष्टि में आधुनिक मात्र भत्सना की पात्र है। कविने काव्य में नारी का इर्ष्या, राक्षसी तथा विष आदि अनेक रुपों में चित्रित किया है "भगवान महावीर'' : कवि शर्माजी, “चंदना उद्धार", सर्ग-१२, पृ.१४१ "श्रमण भगवान महावीर' : कवि योधेयजी, सप्तम सोपान, पृ.२९५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002766
Book TitleMahavira Prabandh Kavyo ka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyagunashreeji
PublisherVichakshan Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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