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________________ हिन्दी के महावीर प्रबन्ध काव्यों का आलोचनात्मक अध्ययन १५५ भगवान महावीर के शासन और धर्म देशना में नारी जाति के लिए कितना आकर्षण था, कितना ऊँचा मान था । उन्होने समवशरण में स्त्रियों के लिए पुरूष के समान पूर्ण स्वतंत्रता थी । बिना किसी संकोच और प्रतिबन्ध के वे उसमें आ-जा सकती थी, उपदेश श्रवण कर सकती थी । कवि गुप्तजी ने समवशरण की सभा (परषदा) का सुंदर शब्दावली में वर्णन किया है 1 थे पर कोटे पर खिंच चित्र बहुरंगी गजराज व्याघ्र थे और मयुर भी संगी जोड़ नर-नारी के चित्रों में छाये १. २. ३. ४. वे वृषभ वहाँ के भी विशाल मन भाये । १ *** सुननर मुनि जन देवगण, जल थल नभ चर जीव । समवशरण में सज गये, नृपति मुकट धर जीव । *** भगवान के नारी - उत्थान का जो महान कार्य किया वह युग-युगान्तर तक नारी को उत्थान एवं कल्याण की ओर प्रेरित करता रहेगा । कवि योधेय ने नारी के गौरव का प्रस्तुत करते हुए लिखा है महावीर ने उस देवी को संयम देकर, मोक्ष पत्थ की उस पथिकाकी राह दिखाकर नारी के गौरव को था अक्षुण्ण बनाया, चंदनबाला को सतियों की मुख्य बनाकर ३ *** मुक्ति- पथ पर चल निकली थी कई नारियाँ । चंदनबाला की शिष्या हो गई नारियाँ ॥ ४ *** " तीर्थंकर " : कवि गुप्तजी, सर्ग - ५, पृ. १८१ "वीरायण" : कवि मित्रजी, “ज्ञानवाणी", सर्ग - १२, पृ. २९९ 'श्रमण भगवान महावीर”, कवि योधेयजी, सोपान - ८, पृ. ३०५ वही, सोपान - ७, पृ. २९५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002766
Book TitleMahavira Prabandh Kavyo ka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyagunashreeji
PublisherVichakshan Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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