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हिन्दी के महावीर प्रबन्ध काव्यों का आलोचनात्मक अध्ययन
१५१ इस प्रकार के क्रूर एवं अमानवीय व्यवहार स्त्री जाति के साथ किये जा रहे थे। कितना निर्दयता पूर्ण वातावरण होगा वहाँ का ? कितनी सुकुमारियाँ छिप छिप कर आँसू बहाती होगी? और भीतर ही भीतर अपने स्वजनों के वियोग एवं पराधीनता की यंत्रणा में हाहाकर कर रही होगी ? कवि ने “वीरायन" काव्य में चंदना की करूण स्थिति का वर्णन किया है -
जंजीरो में चंदना बंधी, बन्दिनी कुमुदनी कारा में। काली नागिनी फुकार उठी, गंगा की निर्मल धारा में। बन्दीगृह में वे कष्ट दिये, जो कहते कहते कह न सका। पीड़ा निर्दोष चंदना की, में बिना कहें भी रह न सका।
*** साधना काल के बारहवें वर्ष में भगवान महावीर ने एक घोर अभिग्रह (वज्र संकल्प किया) जो जैन इतिहास के पृष्ठों पर आज भी जगमगा रहा है। भगवान का यह घोर अभिग्रह केवल उनकी एक कठोर तपः साधना का अंग मात्र बनकर ही नहीं रहा, अपितु इस अभिग्रह ने युग की हवा ही बदल दी। अभिशापग्रस्त नारी जाति के उद्धार
और कल्याण का एक महान पथ प्रशस्त कर दिया । मातृजाति को दासता से मुक्ति दिलाने में मुक्ति के संदेशवाहक भगवान महावीर का यह अभिग्रह एक ऐतिहासिक महत्व है। भगवान महावीर के दर्शन मात्र से चंदना सती का बन्दीगृह से मुक्त होना उसीका सजीव चित्रण कविने “वीरायन" काव्य में प्रस्तुत किया है -
वह सोच रही थी रह रहकर, धन में बिजली सी दमक दमक। कारा के तट तक आती थी, वह शीत धूप सी चमक चमक ॥२
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वास्तव में कहना होगा कि भगवान महावीर जैन संघ श्रावक, श्राविका साधु, साध्वी इन चारों का चतुर्विध संघ बनाकर जो भूमिका निभाई वह युग युगों तक नारी उत्थान एवं कल्याण के मार्ग दर्शन का कार्य करती रहेगी।
“वीरायण', कवि मित्रजी, “संताप", सर्ग-८, पृ.२०२ वही, “उद्धार", सर्ग-१३, पृ.३१७
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