________________
१४७
हिन्दी के महावीर प्रबन्ध काव्यों का आलोचनात्मक अध्ययन
गोधन की दशा समुन्नत थी, धृत-दीप जलाये जाते थे। शिशु-वृन्द दुग्ध के द्वारा ही, प्रायः प्रति दिवस नहाते थे।
*
**
गोएँ इतना पय देती थी, दुहनेवाले थक जाते थे। परदेशी प्यास बुझाने को, जल नहीं, दुग्ध ही पाते थे।
***
इस प्रकार महावीर के समय का भारत आर्थिक दृष्टि से समृद्ध था अन्न और वस्त्र की कमी उस समय किसी के समक्ष नहीं थी । ग्राम और नगर अपनी अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए समर्थ थे। कृषि से अन्न, शिल्पियों से विलास सामग्री एवं पशुओं से दुग्ध और वाहन के कार्य सम्पन्न किये जाते थे । आमोद-प्रमोद की सामग्रियों का भी बाहुल्य था। कूप, वाणी, स्नानागार, सभागृह, नाट्यशाला आदि की भी कमी नहीं थी।
*****
प्रबन्धों के आधार पर नारी भावना महावीरकालीन नारीस्थितिः
__ भगवान महावीर के पूर्व में नारी का स्थान बहुत निम्म श्रेणिका था। नारी मात्र भोगेषणा की पूर्तिका साधन मात्र रह गयी थी। न उसे अध्ययन कर आत्मविकास के अवसर प्राप्त हैं और न वह धर्म एवं समाज के क्षेत्र में आगे ही आ सकती है। दासी के रुप में नारी को जीवन यापन करना पडता है, उसके साथ होनेवाले सामाजिक दुर्व्यवहार प्रत्येक विचारशील व्यक्तिको खटकते हैं। नारी समाज को देखने से ऐसा प्रतीत होता है जैसे युग-युगान्तरसे इनकी आत्मा ही खरीद ली गई है। कवि “मिश्रजी" ने काव्य में महावीरकालीन नारी स्थिति का वर्णन करते हुए लिखा है
१. २.
“परमज्योति महावीर" : कवि सुधेशजी, प्रथम सर्ग, पृ.६१ वही, पृ.११.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org