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________________ १४६ 1 महाभारत के अध्ययन से भी उस समय की आर्थिक समृद्धि का परिज्ञान प्राप्त होता है। नागरिक और ग्रामीण दोनों प्रकार के जीवन का परिचय प्राप्त होता है । घर मिट्टी, ईंट, पत्थर और लकड़ी से बनाये जाते थे । मकानों के बीच में सड़क एवं गलियाँ रहती थी । कवि “सुधेशजी” ने भवनों के सौन्दर्य का सजीव चित्रांकन किया है - कोसों से जिसके सतखण्डे, भवनों के शिखर चमकते थे । जिन पर हग पडते ही पथिकोंके चरण अवश्य ठिठकते थे। २ *** ग्रामों के बाहर मंदिर एवं चैत्य बनवाने की प्रथा थी । कृषि के सम्बन्ध में विशेष उन्नति हुई थी । सिंचाई की व्यवस्था भी विद्यमान थी - कृषि नहीं सूखने पाती थी, हिन्दी के महावीर प्रबन्ध काव्यों का आलोचनात्मक अध्ययन वस्त्र आभूषण सुसंस्कृत ढंग थे सुलेपन से सुगंधित अंग - १ *** कुछ व्यक्ति वेतन से भी आजीविका उपार्जन करते थे और कुछ शासन में कार्य करते थे । सरकारी श्रेणी में कार्य करनेवाले अध्यक्ष कहलाते थे । शस्त्रोपजीवी व्यक्तियों का भी निर्देश प्राप्त होता है । भृति या पारिश्रमिक लेकर काम करनेवाले कर्मकार मजदूरों का भी अस्तित्व विद्यमान था । प्रचलित थे १. ग्राम्य पशुओं में गाय, भैंस, भेंड, बकरी, अश्व, गज आदि की गणना की जाती थी। गौ- पालन, दुग्धोत्पत्ति धृतनिर्माण एवं विभिन्न प्रकार के मिष्टान्न निर्माण भी ३. - थी सुविधा सभी सिंचाई की । प्रत्येक योजना बनती थी, जनता की पूर्ण भलाई की ॥ ३ *** Jain Education International "तीर्थंकर महावीर " : कवि गुप्तजी, सर्ग - १, पृ. ९ " परमज्योति महावीर” : कवि सुधेशजी, प्रथम सर्ग, पृ. ५७ वहीं, पृ.६३ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002766
Book TitleMahavira Prabandh Kavyo ka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyagunashreeji
PublisherVichakshan Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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