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जागरण गीत :
इस काल के कवियों ने जागरण गीत लिख कर देश के युवक वर्ग को चेतना प्रदान की। गांधीवाद से प्रभावित अहिंसा और अन्य का जयघोष करने वाले जागरणगीत हिन्दी कवियों के काव्यों में मिलते हैं -
हिन्दी के महावीर प्रबन्ध काव्यों का आलोचनात्मक अध्ययन
युद्ध बंद- हो, पुजे अहिंसा, विश्वशान्ति के दीप जलें । धरती पर हो स्वर्ग सकल जन महावीर के मार्ग चलें । "
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शान्ति अहिंसा, अमृत सबके हृदय भरो।
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युद्ध न हो इस भू-पर शस्त्र संहार हटे ।
प्रायः प्रत्येक कविने देश के नौजवानों मे स्वदेशाभिमान जागरण किया और मुक्ति का संदेश प्रेषि किया। इन के गीतों में आक्रोश और करूणा के स्वर मिश्रित है । सुभद्राकुमारी चौहान ने “वीरों का कैसा हो वसंत" और " झाँसी की रानी" जैसे गीत लिखकर प्रेरणा की चिनगारी फूंक दी ।
अभियान गीत :
जागरण गीतों की तरह अभियान गीत इस युग में राष्ट्रीय चेतना को उत्तेजित करने हेतु लिखे गए। इन गीतों में राष्ट्र का दर्प और ओज ही प्रतिध्वनित हुआ । इनमें सेवा, त्याग और कर्मयोग की भावनाएँ सर्वोपरि थीं, जिन में स्वराज्य का जन्मसिद्ध भाव मुखरित हो रहा था । प्रायः प्रत्येक कवि “ बढ़े चलो " की प्रेरणा देकर कठिनाईयों, दुर्गमताओं को पार करने का मंत्र प्रदान कर रहा था ।
वर्तमान भारत का चित्रण :
१.
२.
कवि अपने युग का यथार्थ चित्र अंकित करता है । वह अपने दायित्व का निर्वाह उस चितेरे की भाँति करता है जो अपने चित्र द्वारा युगको महान दृष्टि प्रदान करता है । कवि अपने काव्य-सृजन द्वारा युग में व्याप्त असत् तत्वों का यर्थार्थ अंकन कर उसे दूर करने के लिए जन-मानस तैयार करता है । उसकी पद्धति क्रांति की भी हो सकती है और शांति की भी ।
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'भगवान महावीर " : कवि शर्माजी,
वही, "आरती" पृ. ८
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पृ. ३
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