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हिन्दी के महावीर प्रबन्ध काव्यों का आलोचनात्मक अध्ययन इन्द्र उस बाल तीर्थंकर को गोद में लेकर ऐरावत हाथी पर आरूढ हो सुमेरू पर्वत पर गये और शिशु का अभिषेक किया। अभिषेक के पश्चात् जब इन्द्राणी तीर्थंकर कुमार का शरीर पोंछ रही थी तब तीर्थंकर के कपाल-जल बिन्दुओं को सुखाने में असमर्थ हो रही थी। ज्यों ज्यों पोंछती थी, कपोल-जल बिन्दु त्यों त्यों अधिक चमकने लगते थे। यह प्रक्रिया होते इन्द्राणी को पर्याप्त आश्चर्य हुआ। इस प्रकार भ्रमित इन्द्राणी का कविने सुंदर शब्द चित्र प्रस्तुत किया है -
बार बार पोंछती शची, लाल के गाल। पगली ! यह पानी नहीं, यह गहनों की जाल॥
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बालों पर बिजली नहीं हो मत ज्ञानी अचेत ।
कुंडल तेरे कान के चमक रहे है श्वेत ॥२ इन्द्राणी की भ्रान्ति दूर होने में विलम्ब नहीं हुआ, भ्रांति का स्वयमेव निवारण हो गया। क्योंकि वास्तव में वे जल की बूंदे नहीं थी अपितु इन्द्राणी के आभूषणों की प्रतिबिम्ब ही झलक रहा था जो तीर्थंकर के स्वच्छ बदन पर चमककर जल बिन्दुओं की भ्रांति उत्पन्न कर रहा था। इन्द्राणी ने अभिषेक के अनन्तर बालक को जननी त्रिशला की गोद में दिया और इन्द्रने स्तुतिपूर्वक ताण्डव नृत्य किया। नगर में अत्यंत विशेष उत्सव हुआ। इन्द्र-इन्द्राणी आदि अपने-अपने स्थान को चले गये।
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"वीरायण", "कवि मित्रजी', सर्ग-४, पृ.९८ वही
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