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हिन्दी के महावीर प्रबन्ध काव्यों का आलोचनात्मक अध्ययन
१०१ स्वर्ण अवसर प्राप्त हुआ है। महान पुण्योदय से इन्द्राणी पद प्राप्त होता है। इन्द्र-इन्द्राणी
और अन्य देव-देवियाँ भक्तिपूर्वक बार-बार भगवान की स्तुति करते हैं। तदन्तर इन्द्राणी वीर बालक के शरीर पर तेल का मर्दन करती है जिसका चित्रण कविने काव्य में सुंदर ढंग से किया है
पुन स्तुति करते जोड़े हाथ इन्द्र ने पूर्ण विनय के साथ। शची ने लिया सुगन्धित तेलहाथ से चुपड़े शिशु के गात ॥
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इन्द्र-इन्द्राणीने राजा सिद्धार्थ का सन्मान किया। श्वेताम्बर मतानुसार इन्द्राणीने माता त्रिशला को प्रमुग्ध कर शीघ्र सुला दिया। नव जात शिशु को प्रसुति गृह से बाहर ले आई। दिगम्बर मतानुसार इन्द्राणीने माता त्रिशला के मायावी शीशु बनाकर रखा। वहाँ से सभीने सुमेरुं पर्वत पर अभिषेक के लिए प्रस्थान किया:
अति प्रमुग्ध हो गई शची अरू, जननी को द्रुत सुला दिया लेकर शिशु को गोद स्वर्ण गिरी, पर सबने प्रस्थान किया।
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लेती थी शिशु का प्यार, भरा मुख चुम्बन शिशु के प्रकाश से आहलादित थे तन-मन नभ-पथ से होकर चल लिए जब बालक ज्यों दिव्य ज्योति हो नीलाम्बर मे लक-दक
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“श्रमण भगवान महावीर" : कवि योधेयजी, “जन्म कल्याणक", सोपान-१, पृ.७० • भगवान महावीर, कवि शर्मा, “दिव्य शक्ति अवतरण", सर्ग-३, पृ.३३ "तीर्थंकर महावीर" : कवि गुप्तजी, सर्ग-१, पृ.१४.
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