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हिन्दी के महावीर प्रबन्ध काव्यों का आलोचनात्मक अध्ययन
तीर्थंकर का जन्म हुआ ऐसा अवधिज्ञान से ज्ञात होते ही सौधर्म का इन्द्रासन स्वयं प्रकम्पित हो उठा। वह तत्काल इन्द्राणी तथा देवगण आदि परिवार को साथ लेकर नृत्यगान करता हुआ कुण्डलपुर आया । उसने राजभवन में अपूर्व मंगल उत्सव का आयोजन किया । कुण्डग्राम का कण-कण देवोत्सवों से निनादित और अनुगुंजित हो उठा । इन्द्र-इन्द्राणी, माता त्रिशला भी करबद्ध होकर भक्तिपूर्वक स्तुति करने लगे : फिर पंचरत्न का चूर्ण सुमंगल ले कर साथिया बनाया इन्द्राणी ने भूपर योकर विधिवत अहन्त वीर का पूजन करते इन्द्राणी और इन्द्र स्तुति वंदन । '
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करबद्ध खड़े नतशीश ध्यान में लीना वन्दन स्वर फूटे और बज उठी वीणा सुरपति की भक्ति अगाध वीर के आगे ध्यानावस्थित थे किन्तु एक क्षण जागे
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इन्द्राणी स्तुति करने के पश्चात् बालक के अलौकिक शारीरिक सौन्दर्य को देखकर मन ही मन अत्यंत प्रसन्नता का अनुभव करती है। उसके हृदय में बालक के प्रति वात्सल्य उमड़ पड़ता है । उसीका चमत्कारपूर्ण वर्णन कविने कुशलता से किया हैआ इन्द्राणी इन्द्र ने, लिया गोद में लाल । रत्नों की वर्षा हुई, भरे सभी के थाल ॥ आये योगी सन्त जन, आये सिद्ध महान ।
गोदी के भगवान में मुनियों का ध्यान ॥ ३
वीर प्रभु की लीला अपरंपार है । जिसे कोई जान नहीं सकता । कवि अपनी लेखनी द्वारा वर्णन करने में भी असमर्थ है। स्वर्ग के इन्द्र भी उसी लीला का वर्णन करने में भी असमर्थ है । इन्द्राणी का जीवन धन्य है कि जिसे भगवान की सेवा सुश्रुसा करने का
१.
२.
३.
" तीर्थंकर महावीर " : कवि गुप्तजी, सर्ग-५,
वही
"वीरायण", कवि मित्रजी, “जन्मज्योति”, सर्ग - ४, पृ. ९८
पृ. १९९
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