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________________ हिन्दी के महावीर प्रबन्ध काव्यों का आलोचनात्मक अध्ययन कण में अमृत की वर्षा हुई । शुष्क पृथ्वी पर हरियाली छा गयी आज वैशाली की नगरी बाह्य उपकरणों से ही नहीं पर सत्य, अहिंसा के गुणों से भी सुशोभित हो रही है। (ड) शची (इन्द्राणी): जैन मान्यता के अनुसार तीर्थंकर के गर्भ में आने के समय से ही इन्द्राणी सेवामें लग जाती है। जन्म के बाद तो इन्द्राणी सर्वाधिक प्रसन्न होती है। गर्भगृह से बालक को अभिषेक के लिए लाती है। ___तीर्थंकर का जन्म संपूर्ण प्राणी जगत के लिए मंगलमय होता है, इसलिए उनके जन्म-प्रसंग पर मनुष्य ही नहीं, स्वर्ग के देव-देवियाँ, इन्द्र एवं इन्द्राणी तक खुशी मनाते हैं। वीर भगवंत के जन्म से अगणित यातनाओं में सतत दुःखी नारकी जीवों को भी उस क्षण चैन की साँस मिलती है। समस्त कुण्डग्राम में आनंद भेरी बजने लगती है। यहाँ कविने श्रमण भगवान महावीर काव्य में भगवान के जन्म के समय शची के हृदय में हुआ भावोल्लास का सुंदर चित्रण किया है लिए उर में अद्भूत उल्लास शची भी आई विभु के पास। अर्चना करते शत शत बार - टेकती धरती पर थी माथ। *** इन्द्राणी मन ही मन अपने आप को धन्य समझती है कि मुझे तीर्थंकर और तीर्थंकर की माता की सेवा-पूजा करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। स्वर्ग की इन्द्राणी, अन्य देवियाँ आकर भावपूर्वक वंदना करती है। श्रद्धा से भगवान के चरणो में पुष्प, नैवैद्य चढाती है। कविने काव्य में अनुमोदनीय चित्रण अंकित किया है आई इन्द्राणी अन्य देवियाँ आई कर रही वंदना हिलमिल करे सुखदाई। सुरराज इन्द्रनत विनत शरण में जाकर की विनत वन्दना श्रद्धाफूल चढाकर - २ ** * "श्रमण भगवान महावीर" कवि योधेयजी, प्रथम सोपान, पृ.६८. "तीर्थंकर महावीर": कवि गुप्तजी, सर्ग-५, पृ.१९८ २. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002766
Book TitleMahavira Prabandh Kavyo ka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyagunashreeji
PublisherVichakshan Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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