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हिन्दी के महावीर प्रबन्ध काव्यों का आलोचनात्मक अध्ययन कवि इस प्रसंग द्वारा यह संदेश प्रस्तुत करता है कि जो पत्नी पति को उचित मार्ग पर जाने में रोकती है वह सच्ची अर्धांगिनी नहीं होती । सच्ची पत्नी वही है जो मंगलमय कार्य में साथ दे । यशोदा धन्य हुई कि उसे प्रभु के चरणों में दासी बनने का सोभाग्य प्राप्त हुआ। पतिदर्शन से पूर्व के भावः
हे सखि ! आज मैने सुबह में एक स्वप्न देखा, उषाकाल का रमणीय प्रहर था। सुंदर शिखर देखा, उसके पास में शाल वृक्ष की शीतल छाया थी और पृष्ट भूमि पर समुद्र लहरा रहा था। नीरज दल के सिंहासन पर प्रभुको तपस्या की अग्नि में तपते हुए देखा। इन्द्र और अगनित सुरवर बिराजित थे। मुखमण्डलपर तेजस्विता दिखाई दे रही थी। सुर, मुनि और नर जनों को जाप करते हुए देखा । मैंने प्रभु के चरणों में शीश झुकाया था। प्रभु की दृष्टि कृपा से भरी हुई थी। उन्होंने मेरे सिर पर हाथ फेरा। अनायास ही नींद खुल गयी। सवेरा हो गया। हाय सखी ! मैं क्यों जग गई ? क्यों रात बीत गई ? मैं यही चाहती हूँ कि स्वप्न में भी प्रतिदिन प्रभु के दर्शन मिलते रहें। स्वामी की जय हो, धर्म की व विश्वशान्ति की जय हो, युद्ध मिट जाय, दुर्गुण नष्ट हो जाय और जगत में मानवता की सदा विजय हो। मैं प्रसन्न हूँ मेरे, पति ने विश्व के जीव के लिए गृहस्थ जीवन के सुख त्याग दिए।
____ यशोदा एकांत में बैठी हुई है। मंद मंद सुरभित शीतल हवा चल रही है। मन में उत्साह है, हर्ष है और आशा है कि प्रिय जरूर पधारेंगे। उसे आत्मानुभूति होती है कि प्रभु तप में सफल हुए हैं। उन्होंने समाधि से नयन खोल दिये हैं। उनकी अमृतवाणी की वर्षा में विश्व के मानव पहली बार भीग रहे हो, ऐसा आत्मभाव और विश्वास मुझे प्रतीत होता है । हे सखि ! आज मेरा वाम अंग फडक रहा है। शुभ शुकन से हृदय में आशा का संचार हो रहा है। सखि! आरती, सजा, दीप जला, और मंगल घटमें दूब, पवित्र पुष्प, दही, रोली और पट्ट पर अक्षत, ताम्बूल, नैवेद्य, पुंगफल, धूपदान आदि सजाये । आज मेरे भाग्य जगे हैं और वैशाली की रज भी कृत्य कृत्य हो गई है। तभी अनायास ही जय हो, जय हो की ध्वनि सुनाई देने लगी। भगवान महावीर पधारे हैं। सत्य धर्म की विजय हो।
आज यशोदा भगवान महावीर को पाकर धन्य धन्य हो गई। वैशाली नगरी भी धन्य हो गई कि वहाँ आज तीर्थंकर भगवान के पवित्र चरण पड़े। दीर्घावधि से बाट देखती देखती आज यशोदा का स्वप्न साकार हुआ। प्रभु के पदार्पण से वैशाली के कण
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