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हिन्दी के महावीर प्रबन्ध काव्यों का आलोचनात्मक अध्ययन अरि अनिल परदेश से आई है गतिमान। कह प्रिय का संदेश कुछ, कुशल क्षेम भगवान ।'
*** जारी नभ की परी प्रिय से कह संदेश। गौरी अब काली पड़ी, बसे कौन से देश ॥२
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किन्तु प्रिय के न मिलने पर आशा नहीं टूटती है। वह सोचती है अनायस ही कभी फूल खिल उठेगे । कविका कहना है कि वेदना की अविरल ज्वलन शीतलता सत्य का अनावरण करती है। आँसू की वेदना कल्याणी शीतल ज्वाला बन जाती है वेदना ही निराशा में आशा की किरण चमकती है जिसे महाकवि भी आबद्ध नहीं रखते। अपनी निराशा में से विश्व-कल्याण की दृष्टि करता है। इसीलिए आँसू की निराशा जीवन में प्रगति का संकेत करती हैं।
कवियों ने प्रकृति के माध्यम से यशोदा के विरह वर्णन में भावों की अभिव्यक्ति सुंदर ढंग से की है। चांदनी, उषा, संध्या, वेदना, उल्लास, आदि को प्रतीक बनाकर अनुपम चित्रण किए हैं
देख अरी कुछ सूरजसा है, करता आता शुभ्र प्रकाश। लगता है मेरे स्वामी ही, पहुँच रहे हैं नभ के पास ॥३
*** देख अनाधिन सी कलिका मुरझाईसी बिना खिली सी। शैशव में भी नहीं किलकती, गुमसुम सी है होठ-सिली सी॥
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यशोदा का व्यक्तित्व ससीम से असीम की ओर, व्यष्टि से समष्टि की ओर विकसित होता है। यहाँ प्रेम पुष्ट, प्रांजिल एवं गंभीर होकर कवि की अंतर साधना के रूप में प्रस्तुत हुआ है। जिस के माध्यम से कवि निजी जीवन के अनेक मानवीय गुणों का विकास करता है।
"भगवान महावीर" : कवि शर्माजी, "यशोदा विरह", सर्ग-१५, पृ.१६५ वही, पृ.१६५ वही, पृ.१६५ वही, पृ.१६४
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