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________________ हिन्दी के महावीर प्रबन्ध काव्यों का आलोचनात्मक अध्ययन विवाह के पश्चात् यशोदा ने स्वयं को महावीर के प्रति सर्वथा समर्पित ही नहीं कर दिया किन्तु उनकी धर्म साधना में सदा सर्वात्म भाव से सहयोग दिया और नारी पुरूष धर्म-सहायिका होती है, इस तथ्य को प्रत्यक्ष सिद्ध कर दिया। समय पर एक पुत्री का जन्म हुआ, जिसका नाम प्रियदर्शना रखा गया । शिक्षा दिक्षा पूर्ण करने के पश्चात् प्रियदर्शना का विवाह उसी नगर के क्षत्रियकुमार जमालि के साथ कर दिया गया । सांसारिक प्रवृत्तियों से निवृत्त होकर पत्नी, बन्धु आदि परिवारजनों से आज्ञा लेकर महावीर ने गृहत्याग का निर्णय किया । यशोदा का विरह : ९२ पतिदेव का निर्णय सुनकर रानी यशोदा मूर्च्छित हो गयी। कवियों ने महाकाव्यों में यशोदा के विरह का चित्रण बड़े ही सजीव रूप से अंकित किया है । जिस समय यशोदा ने प्रियतम महावीर का प्रव्रज्या का प्रस्ताव सुना तो वह अपनी प्रिय पुत्री प्रियदर्शना के साथ आ पहुँची और विनत स्वर में बोली, “आर्य, आप आज किसी गंभीर विचार में लीन हैं ? पर क्या अभी आपने प्रव्रज्या - ग्रहण के दीर्घ विचारों को छोड़ा नहीं है ? नाथ ! यह कैसे हो सकता है कि आप हमें छोड़कर चले जायें ? शशि के बिना निशा कैसे सुशोभित हो सकती ? आपका जानेका विचार ही हमें व्याकुल बनाये डालता है। राजकुमारी यशोदा दुःखी स्वर में अपने भावों को व्यक्त करती हुई कहती हैनाथ आपकी मैं अर्द्धांगिन । कैसे दूर करोंगे स्वामी, अंग अंग में अंगिन ॥ मेरी साँस साँस में तुम हो, हर धडकन में बसे हुए । तन की वीणा प्रणय नाद में, तार तार में कैसे हुए ॥ १ *** स्वामी, आप चले गये तो हमारी क्या दशा होगी ? जल के अभाव में होनेवाली वेदना का अनुभव मछली ही कर सकती है और इधर नन्ही सी प्रियदर्शना भी अपने पिता के उत्तरीय वस्त्र के पल्ले को पकड़कर सहज ही बाल भाषा में कहती है- "मैं कभी न जाने दूँगी, आपको। इधर राजकुमारी यशोदा पल पल में अनेक प्रश्नों को उभारती हुई मन ही मन में सोचती है-' " 'भगवान महावीर” : कवि शर्माजी, “यशोदाविरह”, सर्ग -१५, पृ.१६३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002766
Book TitleMahavira Prabandh Kavyo ka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyagunashreeji
PublisherVichakshan Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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