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________________ हिन्दी के महावीर प्रबन्ध काव्यों का आलोचनात्मक अध्ययन है। तुमने एक लोकोद्धारक विभूति को जन्म दिया है। संसार शताब्दियों तक तुम्हारी चरण वंदना करेगा। देवि ! तुम्हारे समान सौभाग्यशाली नारियाँ कितनी है ? अतएव वास्तविक परिस्थिति को ज्ञात कर शान्त हो जाइये।" देवों की इस सांत्वनापद वाणी को सुनकर माता का मन कुछ शांत हुआ। फिर भी पुत्र-वियोग की कल्पना इन क्षणों में भी उन्हें विह्वल बनाती रही। उन्हें विश्वास नहीं होता था कि उसका लाडला महावीर वन की उन भयावनी स्थितियों का सामना कर सकेगा ? राजसी वातावरण में पालित-पोषित और सम्बर्धित महावीर तपश्चर्या में होनेवाले कष्टों को सहन कर सकेगा? इधर त्रिशला का मातृत्व उसे विह्वल कर रहा था । आँखों में सावन-भादों के बादल घिरे हुए थे। मन ममता में उबल रहा था और उधर महावीर की दीक्षा कल्याणककी तैयारी हो रही थी। देवों ने विलखते हुए मातृत्व को सांत्वना दी और महावीर की शक्तियों का परिज्ञान कराया। श्वेतांबर मतानुसार लिखे गये काव्य के अन्तर्गत भगवान महावीर के मातापिता का स्वर्गवास होने के दो वर्ष पश्चात् भगवान ने दीक्षा ग्रहण की।उनके माता-पिता ने अंतिम समय में चतुर्विध आहार का त्यागकर संल्लेखना ग्रहण की ऐसा उल्लेख है। (क) यशोदा : भगवान महावीर का पाणिग्रहण महासामन्त समवीर की कन्या यशोदा के साथ हुआ । ' उनका रूप अत्यंत सुंदर था, धर्म एवं राजनीति का उन्हें उचित ज्ञान था। वर्धमान कुमार के लिए सब प्रकार से राजकुमारी यशोदा योग्य थी । यद्यपि राजकुमार वर्धमान को शादी की इच्छा नहीं थी पर माता का बार बार आग्रह होने पर उनके कोमल हृदय को किसी प्रकार से ठेस न पहुँचे। अतः विवाह को तैयार हुए। उनके मनमें दीक्षा से अधिक माता-पिता की सेवा का महत्व था । उनको गर्भावस्थासे अवगत था कि माँ का मेरे प्रति अधिक स्नेह रहेगा। अतः उनके जीवित रहते में दीक्षा ग्रहण नहीं करूँगा, ऐसी प्रतिज्ञा माता के गर्भ में ही ले चुके थे। माता की ऐसी परिस्थिति को जानकर दीक्षा के आग्रह की डोर उन्होने ढीली छोड़ दी। वे मौन हो गये। इस मौन को स्वीकृति मानकर माता त्रिशला ने धूमधाम से राजकुमार वर्धमान का विवाह यशोदा से कर दिया। दि. परंपरा के कुछ काव्य ग्रंथोंमें वर्धमान की प्रव्रज्या के समय माता पिता के जीवित होने तथा त्रिशला के करूण विलाप का काव्यात्मक चित्रांकन किया गया है-कवि गुप्त, मित्र, और सकलकीर्तिके काव्यों में वर्णित है। श्वे. मतानुसार माता-पिताके स्वर्गवास के बाद महावीरने दीक्षाग्रहण की। दि. परंपरा के आचार्यों ने महावीर के विवाह सम्बन्ध का निषेध करके उन्हें आ जन्म ब्रह्मचारी बताया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002766
Book TitleMahavira Prabandh Kavyo ka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyagunashreeji
PublisherVichakshan Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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