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________________ जैन शब्ददर्शन : ४७ वस्तुतः शब्द का वाच्यार्थ सामान्य है या विशेष - यह विवाद इसलिए भी निरर्थक है कि स्वयं शब्दों की अपनी प्रकृति है जिसके आधार पर वे जाति (सामान्य) या व्यक्ति (विशेष) के वाचक बनते हैं । कुछ शब्द जाति वाचक होते हैं, यथा - मनुष्य और कुछ शब्द व्यक्तिवाचक होते हैं, यथासागरमल । साथ ही शब्द जाति का संकेतक होगा या व्यक्ति का - यह बात केवल शब्द के स्वरूप पर ही निर्भर नहीं करती है, अपितु उस संदर्भ पर भी निर्भर करती है, जिसमें उसका प्रयोग किया गया है । अतः इस सम्बन्ध में जैन दार्शनिक किसी ऐकान्तिक दृष्टिकोण को स्वीकार नहीं करते हैं । शब्द और उसके वाच्यार्थ का सम्बन्ध' शब्द के सम्बन्ध में एक महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि शब्द का अपने वाच्यार्थ से और अपने वाच्य विषय से क्या सम्बन्ध है ? यह सत्य है कि शब्द व्यक्तियों, वस्तुओं, तथ्यों, घटनाओं, क्रियाओं एवं भावनाओं के संकेतक हैं । सामान्यतया शब्द (Word), उसका वाच्यार्थ (Meaning) और उसका वाच्य विषय (Object) तीनों का अपना-अपना स्वतन्त्र अस्तित्व है । जैनों के अनुसार शब्द अपने वाच्यार्थ और वाच्य विषय से भिन्न है । शब्द और अर्थ (वाच्य विषय) में वाच्य वाचक भाव है और वाच्य वाचक सम्बन्ध होने का अर्थ यह है कि न तो वे एक दूसरे से पूर्णतया अभिन्न हैं और न पूर्णतया असम्बन्धित हैं । जैन दार्शनिक यह मानते हैं कि दो तथ्य अपनी स्वतन्त्र सत्ता रखते हुए भी वे एक दूसरे से सम्बन्धित हो सकते हैं। उनके अनुसार शब्द न तो वस्तुरूप है और न वस्तु शब्द रूप है । वे न तो यह मानते हैं कि वस्तु जगत् नाद (शब्द) से उत्पन्न है और न यह कि वस्तु जगत् और शब्द में तादात्म्य है । शब्द और अर्थ में न तदुत्पत्ति सम्बन्ध है और न तादात्म्य सम्बन्ध है । फिर भी दोनों में वाच्य वाचक सम्बन्ध तो उन्हें भी मान्य है, यदि उनमें कोई सम्बन्ध नहीं होता तो शब्द अपने वाच्यार्थ को कभी भी स्पष्ट नहीं कर सकते । शब्द और उनके वाच्यार्थ के बीच सम्बन्ध होने का यह अर्थ कदापि नहीं है कि शब्द अपने वाच्यार्थ का स्वरूप ग्रहण कर लेता है। जैन दार्शनिकों के अनुसार शब्द और उसके द्वारा संकेतित अर्थं या विषय में एक सम्बन्ध तो है लेकिन सम्बन्ध ऐसा नहीं कि शब्द अपने अर्थ का स्थान ले ले । शब्द और उसके वाच्यार्थ में पारस्परिक सम्बन्ध की समस्या को लेकर यह प्रश्न उठाया गया है कि शब्द और उसके वाच्यार्थ में किस प्रकार का सम्बन्ध है ? शब्द और उसके वाच्यार्थ के बीच तीन प्रकार के सम्बन्ध माने गये हैं: - १ तद्रूपता या तादात्म्य सम्बन्ध २. तदुत्पत्ति सम्बन्ध ३. वाच्य वाचक सम्बन्ध । तद्रूपता सम्बन्ध को तादात्म्य सम्बन्ध भी कहा गया है । वैयाकरिणकों की अवधारणा के अनुसार यह माना जाता है कि शब्द और उसके वाच्यार्थ में तादात्म्य या एकरूपता है किन्तु जैन विचारकों का कहना है कि शब्द और उसके वाच्यार्थ में तादात्म्य सम्बन्ध नहीं हो सकता है । यदि शब्द और उसके वाच्यार्थ में तादात्म्य सम्बन्ध है तो फिर हमें शब्द के उच्चारण से उसके वाच्य १. ( अ ) न्यायकुमुदचन्द्र पृ० ५४३ । (ब) जैन न्याय पृ० २३७ से २४२ । (स) The Philosophy of Word and Meaning, P. 137-171. (4) The Problem of Meaning in Indian Philosophy, P. 200- 223, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002763
Book TitleJain Bhasha Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherB L Institute of Indology
Publication Year1986
Total Pages124
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size7 MB
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