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________________ जैन शब्ददर्शन : ४३ शब्द के वाच्यार्थ का निर्णय न करके उन्हें सदा एक ही अर्थ में ग्रहण करेंगे तो हमारे व्यवहार में बड़ी अव्यवस्था हो जायेगी। उदाहरण के लिए 'सैन्धव' शब्द घोड़ा और नमक दोनों का वाचक है। यदि कोई व्यक्ति भोजन के समय 'सैन्धव लाओ' शब्द का उच्चारण करता है और श्रोता वहाँ घोड़ा लाकर खड़ा कर देता है तो वह हंसी का पात्र बनता है। इसी प्रकार कोई व्यक्ति यात्रा की तैयारी करते समय 'सैन्धव लाओ' शब्द का उच्चारण करता है और श्रोता यदि नमक लाकर रख देता है तो भी वह उपहास का विषय बनता है। अतः अनेकार्थी शब्दों के वाच्यार्थ का निर्धारण वक्ता के अभिप्राय एवं परिस्थिति (संदर्भ) के आधार पर होता है । वक्ता का अभिप्राय भी वस्तुतः उस समग्र परिवेश पर ही निर्भर करता है जिसमें उस शब्द अथवा वाच्य का उच्चारण किया गया है। समकालीन पाश्चात्य दार्शनिकों ने भी इस बात को स्वीकार किया है कि शब्द का वाच्यार्थ निश्चय केवल शब्द ध्वनि के आधार पर नहीं, अपितु उस समग्र परिवेश के आधार पर निर्धारित होता है, जिसमें वह कहा गया है। प्राचीन भारतीय दार्शनिकों ने भी इस बात को स्वीकार किया है । वाक्यपदीय में भर्तृहरि ने भी इसी सिद्धान्त को स्वीकार किया है । वे कहते हैं कि शब्द अनेकार्थक भी होते हैं और समानार्थक भी। परन्तु उनमें शब्द का कौन सा अर्थ वाच्य बनकर सामने आता है इसका निर्णय वक्ता की प्रयोगभावना के विनियोग पर आधारित होता है और वक्ता का यह विनियोग जिस अर्थ को सामने लाता है उसे सामने लाने में दो नियम काम करते हैं-(१) उपचार और (२) प्रतिचार । उपचार वह है जिसके कारण अन्य अर्थों की अपेक्षा वाच्यार्थ ही प्रमुखता ग्रहण करके सामने आ जाता है। उपचार वक्ता के अभिप्रेत अर्थ को सामने लाता है और प्रतिचार अवांछित अर्थ को अपहित कर देता है।' वस्तुतः शब्द या कथन के वाच्यार्थ के निर्धारण करने में वक्ता के अभिप्राय पर ध्यान देना आवश्यक होता है । यहाँ अभिप्राय का तात्पर्य यह है कि उस शब्द अथवा कथन के विविध अर्थों में वक्ता को कौन सा अर्थ अभिप्रेत है। इस अभिप्रेत अर्थ की सूचना उस सन्दर्भ से मिलती है जिसमें शब्द या वाक्य कहा जाता है। शब्द के वाच्यार्थ का निर्धारण सन्दर्भ के आधार पर ही होता है। जैन दार्शनिकों ने इस सन्दर्भ को ही नय कहा है। कोई भी कथन निरपेक्षरूप से सामने नहीं आता है। जो कुछ भी बोला या कहा जाता है वह किसी अपेक्षा या दृष्टि के आधार पर या किसी सन्दर्भ में ही कहा जाता है। यदि हम उस अपेक्षा या दृष्टि की उपेक्षा करके कथनों या शब्दों के अर्थ का निश्चय करेंगे तो हम शब्द या कथन के सही वाच्यार्थ को नहीं समझ पायेंगे । शब्द या वाक्य का वाच्यार्थ समझने के लिए हमें उस अपेक्षा या दृष्टि अथवा सन्दर्भ को सामने रखना होगा जिसमें कोई शब्द या कथन कहा जाता है। भाषा निरपेक्ष नहीं है और इसलिए भाषा अभिव्यक्तियों को निरपेक्ष रूप से समझने का प्रयत्न सम्यक् नहीं कहा जा सकता। ___ न केवल अनेकार्थक शब्दों अपितु अन्य शब्दों और वाक्यों का अर्थ भी उस परिस्थिति के आधार पर ही निर्धारित होता है जिनमें उन्हें बोला जाता है। जब एक राजगीर दीवार चुनते समय 'इंट' या 'पत्थर' शब्द का उच्चारण करता है तो उसमें वह अकेला शब्द अपना अर्थ-बोध वाक्य के रूप में देता है। उस समय उसका अर्थ होता है-'ईंट लाओ' या 'पत्थर लाओ'। १. देखें (अ) भाषातत्त्व और वाक्यपदीय, १० १८४-१८५ । (ब) वाक्यपदीय, ३.३.३९ से ४२ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002763
Book TitleJain Bhasha Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherB L Institute of Indology
Publication Year1986
Total Pages124
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size7 MB
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