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________________ जिण जम्महो अणु दिणु सियं भाणुकलाई सहुँ दह में दिणि तहो भव (२) सन्मति - नाम रखे जाने का वर्णन कवि ने इस प्रकार किया है अण्णाहिं दिणे तहो तिजएसरासु, किउ सम्मइ णामु जिणेसरासु । चारण मुनि विजय- सुसंजएहिं, तद्दंसणणिग्गयसंसएहि 11 (पत्र ६७ A) 1 इसी प्रकार भगवान् के शेष नामों के रखने का भी सुन्दर वर्णन कवि ने किया है । (४) गौतम को इन्द्र समवशरण में ले जाते हैं । वे भगवान् से अपनी जीव-विषयक शंका को पूछते हैं, भगवान् की दिव्य ध्वनि से उनका सन्देह दूर होता है और वे जिन-दिक्षा ग्रहण करते हैं । इसका वर्णन कवि के शब्दों में पढ़े पुच्छिउ जीवट्ठि दि परमेसरु, पयणिय परमाणंदु जिणेसरु I सो वि जाय दिव्वज्झणि भासइ, तहो संदेहु असेसु विणासइ ।। पंच सयहिं दिय सुएहि समिल्लें, लइय दिक्ख विप्पेण समिल्लें । सोहमाण, पियकुल सिरि देक्खेवि वड्ड माण, सुरेहिं सिरि सेहर रयणहि भासुरे हिं । बहु निवेण, किउ वडमाण इउ णाम् तेण ॥ , ( पत्र ७० A) 1 (५) गौतम ने पूर्वाह्न में दीक्षा ली और अपराह्न में द्वादशांग की रचना की । इसका वर्णन करते हुए कवि कहते हैंपुव्वणहइं लहु दिक्खए जायउ लद्धिउ सत्त णामु विक्खायउ तम्मि दिवसे अवर व्हए तेण वि, सोवंगा गोत्तमणामेण वि 1 जिणमुह - णिगाय अत्थालंकिय, बार हंग सुय पयरयणंकिय I (पत्र ७० A) इस वर्धमान चरित की रचना बहुत सुन्दर और स्वाध्याय योग्य है इसके प्रकाशित होने से अपभ्रंश साहित्य की समृद्धि प्रकट होगी । लइवि पेक्खि (५) जयमित्तहल्ल - विरचित वर्धमान काव्य जय मित्तल ने भी अपभ्रंश भाषा में वर्धमान काव्य रचा है जो कवित्व की दृष्टि से बहुत उत्तम है । इसमें भगवान् का चरित दिगम्बरीय पूर्व परम्परानुसारी ही है । हां, कुछ स्थलों पर अवश्य कुछ वर्णन विशेषताओं को लिये हुए हैं । कवि ने जन्माभिषेक के समय मेरु- कम्पन की घटना का इस प्रकार वर्णन किया है तियसाहिणा, हिमगिरिं दत्थ गंगमुह खिवमि सूर बिंबुव्ब सक्कु कणयगिरि Jain Education International 66 करि जिणदेहु पमुह किम कलसु संदेहु संकंतु आवरिउ सिहरु कुं भु सरसरिसु सुपवाह सोहम्म नियमणा बहु णीर ओ गयदंतु कहि लब्भई, अब्भई कि उ णह तयणाणि चरणं गुलचप्पिओ For Private & Personal Use Only (पत्र ६७ A ) I गंभीर ओ, 11 I संकप्पिओ, " www.jainelibrary.org
SR No.002761
Book TitleVirodaya Mahakavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuramal Shastri
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages388
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size19 MB
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