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________________ भ. महावीर के जन्म से पूर्व अर्थात् आज से अढ़ाई हजार वर्ष के पहिले भारत वर्ष की धार्मिक एवं सामाजिक स्थिति कैसी थी, इसका कुछ दिग्दर्शन प्रस्तुत काव्य के प्रथम सर्ग के उत्तरार्ध में किया गया है । उस समय ब्राह्मणों का बोल बाला था, सारी धार्मिक सामाजिक और आर्थिक व्यवस्था की बागडोर उन्हीं के हाथों में थी । उस समय उन्होंने यह प्रसिद्ध कर रखा था कि 'यज्ञार्थमेते पशवो हि सृष्टाः " और 'वैदिकी हिंसा हिंसा न भवति' अर्थात् ये सभी पशु यज्ञ के लिए ब्रह्मा ने रचे हैं, और वेद-विधान से की गई हिंसा हिंसा नहीं है, अपितु स्वर्ग प्राप्ति का कारण होने से पुण्य है । उनकी इस उक्ति का लोगों पर इतना अधिक प्रभाव पड़ा, कि लोग यज्ञों में केवल बकरों का ही होम नहीं करते थे, वरन भैंसा, घोड़ा और गाय तक का होम करने लगे थे । यही कारण है कि वेदों में अश्वमेघ, गोमेध आदि नामवाले यज्ञों का विधान आज भी देखने में आता है । धर्म के नाम पर यह हिंसा का ताण्डवनृत्य अपनी चरम सीमा पर पहुंच गया था, जिसके फलस्वरूप नरमेध यज्ञ तक होने लगे थे जिनमें कि रूप-यौवन-सम्पन्न मनुष्यों तक को यज्ञाग्नि की आहुति बना दिया जाता था । इस विषय के उल्लेख अनेकों ग्रन्थों में पाये जाते हैं। गीतारहस्य जैसे ग्रन्थ के लेखक लोकमान्य बालगङ्गाधर तिलक ने अपने एक भाषण में कहा था कि "पूर्वकाल में यज्ञ के लिये असंख्य पशु-हिंसा होती थी, इसके प्रमाण मेघदूत काव्य आदि अनेक ग्रन्थों में मिलते हैं ।" भ. महावीर ने इस हिंसा को दूर करने के लिए महान् प्रयत्न किया और उसी का यह सुफल है कि भारतवर्ष से याज्ञिकी हिंसा सदा के लिए बन्द हो गई। स्वयं लोकमान्य तिलक ने स्वीकार किया है कि 'इस घोर हिंसा का ब्राह्मण धर्म से विदाई ले जाने का श्रेय जैन धर्म के ही हिस्से में है । प्रस्तुत काव्य में इस विषय पर उत्तम प्रकाश डाला गया है, जिसे पाठक इसका स्वाध्याय करने पर स्वयं ही अनुभव करेंगे । भ. महावीर के पूर्व सारे भारत की सामाजिक स्थिति अत्यन्त दयनीय हो रही थी । ब्राह्मण सारी समाज में सर्वश्रेष्ठ समझा जाता था । उसके लिए ब्राह्मण-ग्रन्थों में कहा गया था 'कि दुःशील ब्राह्मण भी पूज्य है और जितेन्द्रिय शूद्र भी पूज्य नहीं है । ब्राह्मण विद्वान् हो, या मूर्ख, वह महान् देवता है । और सर्वथा पूज्य है । तथा श्रोत्रिय ब्राह्मण के लिये यहां तक विधान किया गया कि श्राद्ध के समय उसके लिए महान् बैल को भी मार कर उसका मांस क्षोत्रिय ब्राह्मण को खिलावें । इसके विपरीत भ. महावीर ने वर्णाश्रम और जातिवाद के विरुद्ध अपनी देशना दी और कहा- मांस को खाने वाला ब्राह्मण निन्द्य है और सदाचारी शूद्र वन्द्य है । 18 भ. महावीर के जन्म समय भारत की स्थिति १. यज्ञार्थं पशवः सृष्टाः स्वयमेव स्वयम्भुवा । यज्ञस्य भूत्यै सर्वस्य तस्माद् यज्ञे वधोऽवधः ॥ यज्ञार्थं ब्रह्माणैर्वध्याः प्रशस्ता मृगपक्षिणः । या वेदविहिता हिंसा नियताऽस्मिंश्चराचरे । अहिंसामेव तां विद्याद्वेदाद्धर्मो हि निर्बभौ ॥ ३. देखो - यशस्तिलकचम्पू, पूवार्ध । २. ४. देखो सर्ग १६ आदि । ५. दुःशीलोऽपि द्विजः पूज्यो न शूद्रो विजितेन्द्रियः । अविद्वांश्चंव विद्वांश्च ब्राह्मणो दैवतं महत् । एवं यद्यप्यनिष्टेषु वर्तन्ते सर्वकर्मसु । ६. ७. सर्वथा ब्राह्मणाः पूज्याः परमं दैवतं हि तन् ॥ महाजं वा महोक्षं वा श्रौत्रियाय प्रकल्पयेत् । विप्रोऽपि चेन्मांसभुगस्ति निद्यः, सद्-वृत्ताभावाद् वृषलोऽपि वन्द्यः | ८. ९. Jain Education International For Private & Personal Use Only (मनुस्मृति ५।२२ - ३९-४४) पाराशर स्मृति ८|३२| मनुस्मृति ९।३१७ | मनुस्मृति |९|३१९ | वीरोदय १७|१७ www.jainelibrary.org
SR No.002761
Book TitleVirodaya Mahakavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuramal Shastri
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages388
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size19 MB
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