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________________ - रररररररररररररररररा185ररररररररररररररररर स्वप्नेऽपि यस्य न करोति नरो विचारं सम्पद्यते समयमेत्य तदप्यथाऽरम् । कुर्यात्प्रयत्नमनिशं मनुजस्तथापि न स्यात्फलं यदि पलप्रतिकूलताऽऽपि ॥५८॥ ___ मनुष्य स्वप्न में भी जिस बात का विचार नहीं करता है, समय पाकर वही बात आसानी से सम्पन्न हो जाती है । यदि समय प्रतिकूल है, तो मनुष्य निरन्तर प्रयत्न करे, तो भी उसे अभीष्ट फल की प्राप्ति नहीं होती है ॥५८॥ श्रीमान् श्रेण्ठि चतुर्भुजः स सुषुवे भूरामलेत्याह्वयं वाणीभूषणवर्णिनं घृतवरी देवी च यं धीचयम् । तस्यानन्दपदाधिकारिणि शुभे वीरोदयेऽयं कम प्राप्तोऽत्येतितमामिहाष्ट विधुमान् सर्गोऽधुना सत्तमः ॥१८॥ __ इस प्रकार श्रीमान सेठ चतुर्भुजजी और घृतवरी देवी से उत्पन्न हुए वाणी भूषण, बाल ब्रह्मचारी पं. भूरामल वर्तमान मुनि ज्ञानसागर द्वारा विरचित इस वीरोदय काव्य में सत्ययुगादि तीनों युगों का वर्णन करने वाला यह अठारहवां सर्ग समाप्त हुआ ॥१८॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002761
Book TitleVirodaya Mahakavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuramal Shastri
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages388
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size19 MB
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