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________________ 149 ve सत्तरस नागार्जुन की धर्मपत्नी जाकियव्वे श्री शुभचन्द्र सिद्धांत देव की शिष्या हुई और उसने जैनधर्म का पालन किया ||३८|| तदर्थ I जिनास्थानं भूमिदायिनी नागदेवस्यातिमव्वे ऽप्यतिधार्मिका ॥३९॥ नागदेव की महारानी अतिमव्वे भी बड़ी धर्मात्मा थी, जिसने कि जिनालय बनवा करके उसके निर्वाह के लिए भूमि प्रदान की थी ॥३९॥ चाम्बिका वीरचामुण्डराजश्च श्रीनेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रि सेवक तां दधुः 118011 वीर चामुण्डराज, उनकी पत्नी और उनकी माता ये तीनों ही श्री नेमिचन्द्र सिद्धान्त चक्रवर्ती के सेवक हुए और जैन धर्म का महान उद्योत किया ॥ ४० ॥ I चन्द्रमौले स्तु या भार्या नामतोऽचलदेवी वीरबल्लालमन्त्रिणः धार्मिका या बभूव ॥४१॥ राजा वीरबल्लाल के मन्त्री चन्द्रोमौलि के अचलदेवी नाम की जो भार्या थी, वह भी जैनधर्म का द्दढ़ता से पालन करती थी ॥४१॥ या निर्मापय्य महिषी पल्लवराट् जिनसा देवं तत्पत्नी तस्य 1 पत्नीक दम्बराज - कीर्त्तिदेवस्य श्रीपद्मनन्दिसिद्धान्त - देवपादाभ्युपासिका ॥४२॥ कदम्बराज कीर्तिदेव की भार्या मालला भी श्रीपद्मनन्दिसिद्धांत देव के चरणों की उपासिका थी ॥४२॥ 1 ॥४३॥ पल्लवराज काडुवेदी की चट्टला नाम की महारानी सदा जैन साधुओं की सेवा में तत्पर रहा करती थी । उसने भी एक जिनमंदिर बनवाया था ||४३|| Jain Education International काडुवेदी च मालला महिषी चट्ट लाभिधा साधुसेवासु तत्परा 1 दोर्ब लगंग माण्डि - मान्धातुर्या श्रीपट्टदमहादेवी बभूव ।।४४ ।। भुजबल गंगमाण्डि मान्धाता की सहधर्मिणी श्रीपट्टदमहादेवी भी जिनधर्म को धारण करने वाली हुई है ॥४४॥ 1 सधर्मिणी जिनधर्मधुक् For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002761
Book TitleVirodaya Mahakavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuramal Shastri
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages388
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size19 MB
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