________________
୧୯୧୧୧୦୯ ୧୧୧୧୧୧ ୧୧|148jy???????????????
उपर्युक्त उन-उन राजाओं के जैनधर्मानुराग से ही इस देश की समस्त जनता भी प्रायः जैनधर्मानुयायिनी ___ हो गई थी ॥३१॥
खारवेलोऽस्य राज्ञी च नाम्ना सिंहयशा पुनः ।
जैनधर्मप्ररोहार्थं प्रक मं भूरि चक्र तुः ॥३२॥ कलिङ्ग देश-नरेश महाराज खारवेल और उनकी महारानी सिंहयशा देवी ने जैनधर्म के प्रचार के
लिये बड़ा पराक्रम
इक्ष्वाकुवंशिपद्मस्य पत्नी धनवती च या । मौर्यस्य चन्द्रगुप्तस्य सुषमाऽऽसीदशाऽऽर्ह ती ॥३३॥ इक्ष्वाकुवंशी राजा पद्म की पत्नी धनवती ने तथा सम्राट चन्द्र-गुप्त मौर्य की पत्नी सुषमा देवी ने भी जैन धर्म को धारण किया ॥३३॥
महीशूराधिपास्तेषां योषितोऽद्यावधीति ताः । जैनधर्मानुयायित्वं स्वीकुर्वाणा भवन्त्यपि ॥३४॥ मैसूर के नरेश और उनकी राजपत्नियां तो आज तक भी जैनधर्म के अनुयायी होते आ रहे हैं ॥३४॥ पल्लवादिपतेः पुत्री कदाञ्छी मरुवर्मणः । निर्गुन्ददेशाधिपतेः परंलूरस्य चाङ्ग ना ॥३५॥ कारयामासतुर्लोक तिलकाख्यजिनालयम् . यद्वयवस्थार्थमादिष्टं पूनल्लिग्रामनामक म् ॥३६॥ स्थानं श्रीपुरुषाख्येन राज्ञा स्वस्रीनिदेशतः । भूरन्ध्रव्यापिनी यस्मादासीद् धर्मप्रभावना ॥३७॥
पल्लव देश के नरेश की पुत्री और मरुवर्मा राजा की रानी कदाञ्छी तथा निर्गुन्द देश के राजा परंलूर की रानी इन दोनों ने लोक तिलक नामका जिनालय बनवाया और अपनी पत्नी की प्रेरणा से उसके स्वामी पुरुषराज ने पुनल्लि नाम का ग्राम उस चैत्यालय की व्यवस्था के लिए अर्पण किया । इससे सारे संसार में जैन धर्म की महती प्रभावना हुई ॥३५-३७।। ।
जाकियव्वे सत्तरस-नागार्जुनस्य भामिनी श्रीशुभचन्द्रसिद्धान्त-देवशिष्या बभूव या ॥३८॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org