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श्रेष्ठिनोऽप्यर्ह द्दासस्य नाम्ना जम्बूकुमारकः । दीक्षामतः समासाद्य गणनायक तामगात् ॥२५॥
अर्हदास सेठ के सुपुत्र जम्बुकुमार तो (उसी दिन विवाह करके लाई हुई अपनी सर्व स्त्रियों को सम्बोध कर) भगवान् से दीक्षा लेकर गण के स्वामीपने को प्राप्त हुआ ॥२५॥
विद्युच्चौरोऽप्यतः पञ्चशतसंख्यैः स्वसार्थिभिः ।
समं समेत्य श्रामण्यमात्मबोधमगादसौ ॥२६॥ इन्हीं जम्बूकुमार के साथ विद्युच्चोर भी अपने पांच सौ साथियों को लेकर और श्रमणपना अङ्गीकार कर आत्मज्ञान को प्राप्त हुआ ॥२६॥
सूर्यवंशीयभूपालो . . रथोऽभूद्दशपूर्वकः । सुप्रभा महिषीत्यस्य जैनधर्मपरायणा ॥२७॥
सूर्यवंशी राजा दशरथ और उसकी रानी सुप्रभा ये दोनों ही वीर शासन को स्वीकार कर जैन धर्मपरायण हुए ॥२७॥
मल्लिका महिषी चासीत्प्रसेनजिन्महीपतेः । दार्फ वाहनभूपस्याभया नाम नितम्बिनी ॥२८॥ प्रसेनजित् राजा की रानी मल्लिकादेवी और दार्फवाहन नरेश की रानी अभयदेवी ने वीर-शासन को अङ्गीकार किया ॥२८॥
सधर्मस्वामिनः पार्श्व उष्ट्र देशाधिपो यमः । दीक्षा जग्राह तत्पत्नी श्राविका धनवत्यभूत् ॥२९॥ उष्ट्रदेश के स्वामी राजा यम ने (महावीर स्वामी के शिष्य) सुधर्मास्वामी से जिनदीक्षा ग्रहण की और उसकी रानी धनवती श्रावक के व्रत अङ्गीकार कर श्राविका बनी ॥२९॥
श्रीवीरादासहस्राब्दीपर्यन्तमिह तद्-वृषः बभूव भूषणं राज्ञां कुलस्येत्यनुमीयते ॥३०॥
इस प्रकार श्री वीर भगवान् के समय से लेकर एक हजार वर्ष तक उनके द्वारा प्रचारित जैन धर्म राजाओं के कुल का आभूषण रहा, ऐसा (प्राचीन इतिहास से) अनुमान होता है ॥३०॥
एतद्-धर्मानुरागेण चैतद्देशप्रजाऽखिला । प्रायशोऽत्र बभूवापि जैनधर्मानुयायिनी ।३१॥
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