SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 227
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ रररररररररररररर134ररररररररररररररररर तत्रत्यधम्मिल्लधरासुरस्य पुत्रोऽभवद् भहिलया प्रशस्यः । भूतार्थवेदी गणभृत् सुधर्मः स पञ्चमोऽवाप्य वृषस्य मर्म ॥६॥ उसी कोल्लाग ग्राम के धम्मिल्ल नामक भूदेव (ब्राह्मण) के भद्दिला नाम की स्त्री से उत्पन्न प्रशंसनीय सुधर्म पांचवे गणधर हुए । जो कि धर्म के मर्म को प्राप्त होकर तत्त्व के यथार्थवेत्ता बन गये थे ।।६।। मौर्यस्थले मण्डिकसंज्ञयाऽन्यः बभूव षष्ठो गणभृत्सुमान्यः । पिताऽस्य नाम्ना धनदेव आसीत्ख्याता च माता विजया शुभाशीः ॥ मौर्य नामक ग्राम में उत्पन्न हुए, मण्डिक नाम वाले छठे सुमान्य गणधर हुए । इनके पिता का नाम धनदेव था और शुभ-हृदय वाली माता विजया नाम से प्रसिद्ध थी ॥७॥ असूत माता विजयाऽथ पुत्रम्मौर्येण नाम्ना स हि मौर्यपुत्रः ।। वीरस्य सान्निध्यमुपेत्य जातस्तत्त्वप्रतीत्या गणराडिहातः ॥८॥ सातवें गणधर मौर्यपुत्र हुए । इनकी माता का नाम विजया और पिता का नाम मौर्य था । ये भी वीर भगवान् के सामीप्य को प्राप्त कर तत्त्व की यथार्थ प्रतीति हो जाने से दीक्षित हुए थे ॥८॥ माता जयन्ती च पिता च देवस्तयोः सुतोऽकम्पितवाक् स एव । वीरस्य पार्वे मिथिलानिवासी बभूव शिष्यो यशसां च राशिः ॥९॥ मिथिला-निवासी और यशों की राशि ऐसे अकम्पित वीर भगवान् के पास में दीक्षित हो शिष्य बनकर आठवें गणधर बने । इनकी माता का नाम जयन्ती और पिता का नाम देव था ॥९॥ गणी बभूवाऽचल एवमन्यः प्रभोः सकाशान्निजनामधन्यः । वसुः पिताऽम्बाऽस्य बभौ च नन्दा सा कौशलाऽऽख्या नगरीत्यमन्दा ॥१०॥ नवें गणधर स्व-नाम-धन्य अचल हुए, जिन्होंने वीर प्रभु के पास जाकर शिष्यत्व स्वीकार किया था । इनके पिता का नाम वसु और माता का नाम नन्दा था । ये महा सौभाग्य वाली कौशलापुरी के निवासी थे ॥१०॥ मेतार्यवाक् तुङ्गिक सन्निवेश-वासी पिता दत्त इयान् द्विजेशः । माताऽस्य जाता वरुणेति नाम्ना गणीत्युपान्त्यो निलयः स धाम्नाम् ।। परम कान्ति के निलय (गृह) मेतार्य उपान्त्य अर्थात् दशवें गणधर हुए । ये तुंगिक सन्निवेश के निवासी थे । इनके पिता का नाम दत्त और माता का नाम वारुणी था । ये भी श्रेष्ठ ब्राह्मण थे ॥११॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002761
Book TitleVirodaya Mahakavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuramal Shastri
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages388
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy