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अथ चतुर्दशः सर्गः
श्रीवीरसन्देशसमर्थनेऽयं गणी यथा गौतमनामधेयः । दशाऽपरेऽपि प्रतिबोधमापुस्तेषामथाख्याऽथ कथा तथा पूः ॥१॥ जिस प्रकार श्री वीर भगवान् के सन्देश के प्रसार करने में गौतम नामक गणधर समर्थ हुए, उसी प्रकार अन्य भी दश गणधर प्रतिबोध को प्राप्त हुए । अब उनके नाम, नगरी आदि का कुछ वर्णन किया जाता है ॥१॥
युतोऽग्निना भूतिरिति प्रसिद्धः श्रीगौतमस्यानुज एवमिद्धः ।
अभूद् द्वितीयो गणभृत्स वायुभूतिस्तृतीयः सफलीकृताऽऽपुः ॥२॥ श्री गौतम का छोटा भाई, जो कि अग्निभूति नाम से प्रसिद्ध एवं विद्याओं से समृद्ध था, वह भगवान् का दूसरा गणधर हुआ । अपने जीवन को सफल करने वाला वायुभूति तीसरा गणधर हुआ ॥२॥
सनाभयस्ते त्रय एव यज्ञानुष्ठायिनो वेदपदाऽऽशयज्ञाः । गीर्वाणवाण्यामधिकारिणोऽपि समो ह्यमीषामपरो न कोऽपि ॥३॥
ये तीनों ही भाई यज्ञ यागादि के अनुष्ठान करने वाले थे, वेद के पदों मंत्रों के अभिप्राय एवं रहस्य के ज्ञाता, तथा देववाणी संस्कृत भाषा के अधिकारी विद्वान् थे । उस समय इनके समान भारतवर्ष में और कोई दूसरा विद्वान् नहीं था ॥३॥
श्रीगोबरग्रामिवसूपयुक्त भूतेः पृथिव्याश्च सुताः सदुक्ताः । ध्वनिर्यकान् स्मेच्छति पुत्रबुद्धया स्वयम्वरत्वेन वृता विशुद्धया ॥४॥
ये तीनों ही मगध देशान्तर्गत गोबर ग्राम-निवासी वसुभूति ब्राह्मण और पृथिवी देवी के पुत्र थे । इन्हे सरस्वती माता ने पुत्र-बुद्धि से स्वीकार किया और विशुद्दि देवी ने स्वयम्वर रूप से स्वयं वरण किया था ॥४॥
अभूच्चतुर्थः परमार्य आर्यव्यक्तोऽस्य वप्ता धनमित्र आर्यः । कोल्लागवासी भुवि वारुणीति माता द्विजाऽऽख्यातकुलप्रतीतिः ॥५॥
परम आर्य आर्यव्यक्त चौथे गणधर हुए । इनके पिता कोल्लाग ग्रामवासी आर्य धनमित्र थे और माता वारुणी इस नाम से प्रसिद्ध थी । ये भी प्रसिद्ध ब्राह्मण कुल में उत्पन्न हुए थे ॥५॥
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